घड़ी के गोल दायरे से मुक्त,
भूतकाल की गहराइयों से निकल,
वर्तमान को चीरता,
भविष्य की ओर निरंतर चलता रहता है समय
और काल की ये परिभाषाएँ दे जाता है /
गतिशील,
कभी अच्छा, कभी खराब
कभी क्रूर, कभी दयालु
कभी सीमित, कभी असीमित
कभी लौटता हुआ
तो कभी रुक सा जाता है,
पर अंततः गतिशील;
खिलती कली में
पगडंडी पर गहराते निशानों में
बनते बिगड़ते रेत के टीलों में
पत्थर पर जमती कई में
चेहरे पर पड़ती झुर्रियों में
एक छाप सी छोड़ जाता है ;
गतिशील
चलता ही जाता है
अपने से आगे निकालने की सारी कोशिशों को नाकाम करता हुआ
आत्मा अमर है,
शायद वो जानती हो ये कब पैदा हुआ /
या फिर जीवन की इन सभी अभिधारणाओं से परे है
कौन जाने
....रजनीश
1 comment:
wrote it long back, its undated, prob'ly in 1989
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