आओ उस ओर चलें
जीवन की धारा में
हँसते हुए , दुखों को पीछे छोड़ते
आओ चलें ,
थामे हाथ , एक स्वर में गाते
और एक ताल पर नाचते पैर
आओ उस ओर चलें
आओ चलें
पार करें मिलकर वो पहाड़
जो फैलाए सीना रोज शाम
सूरज को छिपा लेता है अपने शिखर के पीछे
आओ चलें
लांघें उसे क्यूंकि उसके पीछे ही है
मीठे पानी की झील
आओ उस ओर चलें
कांटो से होकर खिलखिलाते फूलों की ओर,
आओ चलें उस मंजिल की ओर
जो जीवन में ही समाई है ,
कहीं दूर नहीं बस उन तूफानों और बादलों के बीच,
आओ उस ओर चलें
....रजनीश
1 comment:
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