जिंदगी - एक अनंत प्रवाह ,
हम देखते हैं इसे बहते
हरदम , चश्मा लगाकर /
जिस रंग का चश्मा – उस रंग की जिंदगी /
किसी को लाल पसंद नहीं /
कोई हरा-पीला पसंद करता है /
हर किसी को आज़ादी - चश्मा बदलो - रंग बदलता है/
पर ये आज़ादी किसी काम नहीं आती /
हम आज़ाद हो ही नहीं पाते ,
मानो , कोई एक चश्मा जैसे
चमड़ी से जुड़ गया हो / और
हम चाहकर भी चश्मा बदल नहीं पाते
...रजनीश
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