रिश्तों का सफर है जिंदगी,
जिंदगी की रेल से जैसे स्टेशन का रिश्ता ,
पटरियों के जाल से जुड़े स्टेशन ,
और सुख दुख की इन पटरियों पर दौड़ती ...
येजिंदगी ....
जिंदगी की रेल से जैसे स्टेशन का रिश्ता ,
पटरियों के जाल से जुड़े स्टेशन ,
और सुख दुख की इन पटरियों पर दौड़ती ...
येजिंदगी ....
कई गाडियाँ और
पटरियाँ बदलती है / पीछे छूटते स्टेशन
पटरियाँ बदलती है / पीछे छूटते स्टेशन
और आगे आते नए / और
चलती रहती है ज़िदगी इस तरह
चलती रहती है ज़िदगी इस तरह
यात्री का बर्थ से, गाड़ी का ड्राइवर से रिश्ता,
ड्राइवर का इंजिन से , पटरियों का गाड़ी से,
गाड़ी का प्लैटफ़ार्म से रिश्ता...
प्लैटफ़ार्म का कुली से, कुली का मुसाफिर से
और मुसाफिर का मुसाफिर से रिश्ता...
ताश के पत्तों , बहसों, झगड़ों-रगड़ों , गप्प -चिल्लपों से
बेखबर चलती रहती है रेल
मुसाफिर का मंजिल से रिश्ता --
जिसके बीच मिलते ढेरों रिश्ते ---
जिनसे होकर गुजरना होता है ...
पूरी रफ्तार से दौड़ती गाड़ियाँ हर वक़्त /
अपनी अपनी जिंदगी कंधों पर लादे लोग हर तरफ /
ज़िंदगी का सफर , रिश्तों का सफर है,
चलता रहता है ,
हरदम - हरतरफ फैली पटरियों और रिश्तों के जाल में
......रजनीश (11.12.93 )
4 comments:
i have slightly edited and modified the original one which i had penned down in 1993!
by the way the platform you see in above pics belongs to my birthplace!!!
रेल को बिम्ब बना कर सटीक प्रस्तुति !
बहुत सही उद्गार व्यक्त किए हैं सर।
सादर
सुन्दर रचना असर करती है।
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