Thursday, November 25, 2010

रिश्तों की दुनिया

IMAG0587
रिश्तों का सफर है जिंदगी,                                             
जिंदगी की रेल से जैसे स्टेशन का रिश्ता ,
पटरियों के जाल से जुड़े स्टेशन ,
और सुख दुख की इन पटरियों पर दौड़ती ...
येजिंदगी ....
कई गाडियाँ और
पटरियाँ बदलती है / पीछे छूटते स्टेशन
और आगे आते नए   /  और
चलती रहती है ज़िदगी इस तरह                
 IMAG0592सब ओर फैले हैं रिश्ते
यात्री का बर्थ से, गाड़ी का ड्राइवर से रिश्ता,
ड्राइवर का इंजिन से , पटरियों का गाड़ी से,
गाड़ी का प्लैटफ़ार्म से रिश्ता...
प्लैटफ़ार्म का कुली से, कुली का मुसाफिर से
और मुसाफिर का मुसाफिर से रिश्ता...
ताश के पत्तों , बहसों, झगड़ों-रगड़ों , गप्प -चिल्लपों से
बेखबर चलती रहती है रेल
IMAG0545 जितने लोग उतनी मंज़िलें,
मुसाफिर का मंजिल से रिश्ता --
जिसके बीच मिलते ढेरों रिश्ते ---
जिनसे होकर गुजरना होता है ...
पूरी रफ्तार से दौड़ती गाड़ियाँ हर वक़्त /
अपनी अपनी जिंदगी कंधों पर लादे लोग हर तरफ /
ज़िंदगी का सफर , रिश्तों का सफर है,


चलता रहता है ,
हरदम - हरतरफ  फैली पटरियों और रिश्तों के जाल में
......रजनीश (11.12.93 )

4 comments:

रजनीश तिवारी said...

i have slightly edited and modified the original one which i had penned down in 1993!
by the way the platform you see in above pics belongs to my birthplace!!!

Nidhi said...

रेल को बिम्ब बना कर सटीक प्रस्तुति !

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सही उद्गार व्यक्त किए हैं सर।

सादर

vandana gupta said...

सुन्दर रचना असर करती है।

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....