हे प्रभु!!
करते क्यूँ तुम,
कोशिश दिल में बसने की ...
घुस न सको तुम इधर
कभी ,
इसलिए दी गद्दी ,
मंदिर की ...
रखा तुम्हें है
मंदिर में,
भय-दुख में तुमको खोज सकूँ,
और सुख में
कर दरवाजे बंद,
सूरत तेरी मैं भूल सकूँ ...
तुझे रखा है ,
पर्दे में ,
तुझसे छुपकर ,
दुष्कर्म करूँ ,
और हो इच्छा जब
मेरी , मैं तुझसे संपर्क करूँ ...
नहीं है ताकत , घबराता हूँ,
दर्द नहीं सह पाता हूँ,
अपनी कमजोरी से हो व्याकुल,
तुमको फिर मैं बुलाता हूँ....
पर जब सब कुछ ठीक चल रहा,
हो दिवाली बस्ती में ,
कौन बुलाये तुम्हें यहाँ जब,
माहौल भरा हो मस्ती में ...
रखता नहीं तुम्हें हमेशा,
जरूरत पर ही बुलाता हूँ,
स्थापित कर तुम्हें,
विसर्जित , मैं फिर कर आता हूँ ....
नहीं जरूरत मुझे तुम्हारी
खुशगवारी की सूरत में,
इसीलिए रख छोड़ा तुमको ,
इक पत्थर की मूरत में,
पत्थर में ढाला है तुम्हें,
कि, मनमानी तुम कर न सको,
रहो वहीं तुम जकड़े
मेरा बाल भी बांका कर न सको...
घुस गए अगर तुम अंदर मेरे ,
तो मेरा सब खत्म हो जाएगा,
फिर इस दुनियादारी के
जंजाल का जिम्मा कौन उठाएगा?
..............रजनीश (20.12.2010)
2 comments:
तुझे रखा है ,
पर्दे में ,
तुझसे छुपकर ,
दुष्कर्म करूँ ,
और हो इच्छा जब
मेरी , मैं तुझसे संपर्क करूँ ...
घुस गए अगर तुम अंदर मेरे ,
तो मेरा सब खत्म हो जाएगा,
फिर इस दुनियादारी के
जंजाल का जिम्मा कौन उठाएगा?
shabd nahi hain Rajneesh ji tareef yogya mere paas.fir bhi keh du main aapko, nahi hai aapki prarthana ka koi jawaab.
hum hamesha prabhu ko hi dosh dete hain, pne karmo ke bare main kabhi sochte hi n ahi shayad.isliye bhagwaan se k hafa raahte hain.
अच्छी अभिव्यक्ति ।
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