Wednesday, May 4, 2011

अब क्या लिखूँ ?

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लिखूँ एक नयी कविता ?
वही तो लिखूंगा
जो भीतर है मेरे
या तुम्हारे
या हम दोनों के बीच रखा है,
पर वो तो नया नहीं है...
जो है, वही तो उतारूँगा
शब्द बदलूँगा, शैली बदलूँगा ,
पर  बात तो है वही ... 
नए जज़्बात, नई सृष्टि कहाँ से लाऊँगा ?
जो लिखा नहीं गया
वो भी नया नहीं है...
कल्पना लिखूँ,
वो भी तो जुड़ी है जमीन से
पैदा हुई यहीं
निकली किसी पुराने सच से ...
हो स्वप्न या फिर यथार्थ
मेरा  सृजन  मेरा
या तुम्हारा ही अंश होगा...
कहानी बदलाव की भी पुरानी है
क्यूंकि वो  है चिरस्थायी... 
नया कुछ नहीं होता,
बस चेहरे बदलते रहते हैं,
सूरज और चाँद बदलते हैं,
धरती और आकाश बदलते हैं,
बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर  कविता वही की वही रहती है  ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?
...रजनीश ( 02.05.2011)

7 comments:

Anupama Tripathi said...

मन की ..सोच की धारा का प्रवाह है कविता ....सब नया है ...और शायद नया कुछ भी नहीं |
सुंदर अभिव्यक्ति |

विभूति" said...

बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर कविता वही की वही रहती है ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?bhut khubsurat abhivaykti...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

कविमन की कशमकश का सुन्दर चित्रण

रचना दीक्षित said...

धरती और आकाश बदलते हैं,
बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर कविता वही की वही रहती है ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?
लिख तो डाली एक नई अच्छी सी कविता सुंदर अभिव्यक्ति

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मन के द्वन्द को लेकर ही रच डाली नई कविता..... प्रभावित करती है प्रवाहमयी सोच की अभिव्यक्ति

mridula pradhan said...

to purani hi likhte rahiye......hum padhte rahenge...

induravisinghj said...

सुंदर कविता...

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....