लिखूँ एक नयी कविता ?
वही तो लिखूंगा
जो भीतर है मेरे
या तुम्हारे
या हम दोनों के बीच रखा है,
पर वो तो नया नहीं है...
जो है, वही तो उतारूँगा
शब्द बदलूँगा, शैली बदलूँगा ,
पर बात तो है वही ...
नए जज़्बात, नई सृष्टि कहाँ से लाऊँगा ?
जो लिखा नहीं गया
वो भी नया नहीं है...
कल्पना लिखूँ,
वो भी तो जुड़ी है जमीन से
पैदा हुई यहीं
निकली किसी पुराने सच से ...
हो स्वप्न या फिर यथार्थ
मेरा सृजन मेरा
या तुम्हारा ही अंश होगा...
कहानी बदलाव की भी पुरानी है
क्यूंकि वो है चिरस्थायी...
नया कुछ नहीं होता,
बस चेहरे बदलते रहते हैं,
सूरज और चाँद बदलते हैं,
धरती और आकाश बदलते हैं,
बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर कविता वही की वही रहती है ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?
...रजनीश ( 02.05.2011)
7 comments:
मन की ..सोच की धारा का प्रवाह है कविता ....सब नया है ...और शायद नया कुछ भी नहीं |
सुंदर अभिव्यक्ति |
बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर कविता वही की वही रहती है ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?bhut khubsurat abhivaykti...
कविमन की कशमकश का सुन्दर चित्रण
धरती और आकाश बदलते हैं,
बदल जाते हैं शब्द और भाषा,
पर कविता वही की वही रहती है ,
कैसे लिखूँ नयी कविता ?
लिख तो डाली एक नई अच्छी सी कविता सुंदर अभिव्यक्ति
मन के द्वन्द को लेकर ही रच डाली नई कविता..... प्रभावित करती है प्रवाहमयी सोच की अभिव्यक्ति
to purani hi likhte rahiye......hum padhte rahenge...
सुंदर कविता...
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