Sunday, May 29, 2011

एक इबारत

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झील की ओर
जा रहे हो ?
वहाँ  खड़ी दीवार पर
लिखी जो  इबारत है
मेरे सपनों का लेखा-जोखा ,
मेरी कहानी है..
पर उसमें मेरे सपने
नहीं  दिखेंगे तुम्हें ...
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...रजनीश (29.05.11)

17 comments:

Anupama Tripathi said...

gahan ati sunder bhaav ..
bahut sunder rachna ..badhai .

nilesh mathur said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

कविता रावत said...

उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...सच यूँ ही तो जिंदगी की कोई इबारत नहीं बन जाती, बहुत बार टूटना-गिरना पड़ता है पत्तों के तरह..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
हार्दिक शुभकामनायें

vandana gupta said...

उफ़ ………बेहद गहन और दर्दभरी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पत्तों पर लिखी इबारत ...सुन्दर अभिव्यक्ति

सुज्ञ said...

मार्मिक अभिव्यक्ति!! रजनीश जी, बेहद प्रभावशाली!!

रश्मि प्रभा... said...

patton per os ki bundon ko bhi dikhna jinmein jeene ka hausla hai

विभूति" said...

bhut hi bhaavpur rachna...

Jyoti Mishra said...

short and sweet but full of message !!!

रचना दीक्षित said...

तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...

बहुत गंभीर रचना. भावनात्मक प्रस्तुति. शुभकामनायें.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

kuch hi shabdon mein badi gehri baat keh di aapne, bahut sunder

सदा said...

तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना .

गहन शब्‍दों के साथ भावमय प्रस्‍तुति ।

Kailash Sharma said...

बहुत गहन भावपूर्ण प्रस्तुति..

रेखा श्रीवास्तव said...

bahut sundar abhivyakti. apane ko prakriti se jod kar jo shabd diye hain vah kabile tareeph hain.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना .

Sunder Bimb ..Sunder Panktiyan

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यह कविता अच्छी लगी।

Anita said...

गहन भावों से सजी कविता !

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....