झील की ओर
जा रहे हो ?
वहाँ खड़ी दीवार पर
लिखी जो इबारत है
मेरे सपनों का लेखा-जोखा ,
मेरी कहानी है..
पर उसमें मेरे सपने
नहीं दिखेंगे तुम्हें ...
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...रजनीश (29.05.11)
17 comments:
gahan ati sunder bhaav ..
bahut sunder rachna ..badhai .
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...सच यूँ ही तो जिंदगी की कोई इबारत नहीं बन जाती, बहुत बार टूटना-गिरना पड़ता है पत्तों के तरह..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
हार्दिक शुभकामनायें
उफ़ ………बेहद गहन और दर्दभरी।
पत्तों पर लिखी इबारत ...सुन्दर अभिव्यक्ति
मार्मिक अभिव्यक्ति!! रजनीश जी, बेहद प्रभावशाली!!
patton per os ki bundon ko bhi dikhna jinmein jeene ka hausla hai
bhut hi bhaavpur rachna...
short and sweet but full of message !!!
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
बहुत गंभीर रचना. भावनात्मक प्रस्तुति. शुभकामनायें.
kuch hi shabdon mein badi gehri baat keh di aapne, bahut sunder
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना .
गहन शब्दों के साथ भावमय प्रस्तुति ।
बहुत गहन भावपूर्ण प्रस्तुति..
bahut sundar abhivyakti. apane ko prakriti se jod kar jo shabd diye hain vah kabile tareeph hain.
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना .
Sunder Bimb ..Sunder Panktiyan
यह कविता अच्छी लगी।
गहन भावों से सजी कविता !
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