साँस ले रही थी,
कल देखी,
एक पुरानी ज़िंदगी...
फुट पाथ पर ,
दीवार सहारे ,
भरी दुपहरी,
धूप में तपती ,
बरसों से बेख़बर पड़ी थी
एक पुरानी ज़िंदगी....
धंसा पेट पीठ में,
और फैली थी छाप ,
गुजरे बरसों की
सारे जिस्म पर,
और वक्त की झुर्रियों में
चेहरा उसका छुप गया था,
भीड़ में खोई और बेनाम
एक पुरानी ज़िंदगी .....
सिरहाने के थैले से
झाँक रहा था एक खिलौना ,
खाली डिबिया, एक फ्रेम
जिसमें तस्वीर नहीं थी,
चिपकी थीं कुछ यादें
सपनों की, पैबंदों में ,
बेशुमार दौलत सम्हालती ,
एक पुरानी ज़िंदगी.....
शब्द सारे किसी कोठरी में ,
शायद उसके छूट गए थे ,
एक शब्द "बेटा" बतौर निशानी
उसके साथ बचा था ....
हाथ से लगी एक कटोरी
आँखों में कुछ पानी भी था...
पीकर जिसको काम चलाती
एक पुरानी ज़िंदगी...
आवाज़ें नहीं पहुँचती उस तक,
जैसे बहुत दूर आ गई
दिखती नहीं किसी को
न उसे कोई नजर आता था
सत्तर सालों की कहानी ,
लाठी संग वहाँ पड़ी थी,
देख आसमां किसे बुलाती
एक पुरानी ज़िंदगी....
साँस ले रही थी,
कल देखी,
एक पुरानी ज़िंदगी......
............रजनीश (31.12.2010)
7 comments:
नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत बढ़िया रचना...
शुभकामनाएँ...
बहुत ही बढ़िया सर!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
जीवन संध्या
काटना बहुत ही कठिन है
अच्छी रचना
संवेदनशील प्रस्तुति ....
Ek purani zindagi..samvednaon se bharpoor...
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