रेखा -ओ- रेखा ,
मैंने तुझको देखा......
तू धारा है इक नदिया की
निकली तू मणिबंध से
और पहुँच गयी अनामिका तक- पर है क्यूँ तू कटी-फटी ?
रेखा-ओ-रेखा ,
मैंने तुझको देखा..............
तू है इक पगडंडी -
गुरु पर्वत की तलहटी से
लगाती शुक्र के घर का चक्कर
पूरी जमीन पार कर गई- पर कितना हूँ जिंदा मैं ?
रेखा-ओ-रेखा
मैंने तुझको देखा......
तू लकीर है एक जख्म की
देख तुझे लगता है जैसे ,
हृदय पर तू कटार से खिंची
तुझमें हंसने रोने का हिसाब है, तू धड़कती क्यूँ नहीं ?
रेखा-ओ-रेखा
मैंने तुझको देखा....
तू तो रेल की पटरी लगती
बना रखा है इक सम अंतर ,
दिल तक जाती रेखा से
बताओ तुम पर ही चलूँ या गुजरूँ बगल के रस्ते से?
रेखा-ओ-रेखा
मैंने तुझको देखा .....
जैसे लाइन खिचीं कागज पर ...
नहीं थी कल तू यहाँ
आज इधर चली आई है ?
मैंने नहीं बुलाया फिर यहाँ तू क्यूँ निकल आई है ?
रेखा-ओ-रेखा
मैंने तुझको देखा ......
तू है रेत का समंदर,
अपने कदमों की छाप देखता हूँ तुम पर
पर एक छोर तेरा अब तक कोरा ...
गर पहुंचूँ उस छोर तक तो वहाँ क्या तू मिलेगी ?
रेखा-ओ-रेखा
मैंने तुझको देखा
किसने खींचा है तुझे ,
बना रही तू जाल मिल रेखाओं से
समझती है क्या मैं तुझे मिटा न पाऊँगा
कर ले खड़े अवरोध मैं तो पार निकाल कर जाऊंगा
( भाग्य , हृदय, मष्तिस्क , और शक्ति से मिलकर बना हमारा जीवन ...हाथ पर बनी रेखाएँ इन्हें इंगित करती हैं -(हृदय रेखा, मष्तिस्क रेखा , भाग्य रेखा ,जीवन रेखा और भी ढेर सारी रेखाएँ ),पामिस्ट कहते हैं ऐसा ...इन्हीं हस्तरेखाओं पर हुआ लिखने का मन तो ये कविता बनी ...
......रजनीश (28.12.2010)
12 comments:
हस्तरेखाओं पर लिखी अच्छी रचना
jisne bhi khincha ho tumhen ... tum alag alag arth se bhare ho
अच्छी समीक्षा है...
rekhaayo ka khel hai mukaddar... acchi prstuti....
'कर ले खड़े अवरोध मैं तो पार निकल कर जाऊँगा '
.................दृढ संकल्प का एहसास
...........बढ़िया प्रस्तुति
सुन्दर रचना
Very refreshing and I love the topic. Beautiful...
वाह रेखाओ के माध्यम से बहुत ही सही बात कह दी।
रेखाओ के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया।
lagta hai kafi gyan hai hastrekhao ke bare me.
sunder abhivyakti.
सुन्दर प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
रेखाओ के माध्यम से बहुत ही सही बात कह दी
Post a Comment