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Saturday, May 28, 2011

इक रास्ता दो राही

एक ड्राइवर की ज़िंदगी कुछ लाइनों में बयान करने की कोशिश है यहाँ पर
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मेरी ज़िंदगी के रास्ते में
मिलता है एक ज़ालिम रास्ता
वही रास्ता जो सोता नहीं
है वो उसकी ज़िंदगी का रास्ता

जो मेरे घर का रास्ता है
वो रास्ता उसका घर है
मेरे घर पर एक छत है
उसका तो फैला अंबर है

एक गाड़ी मैं चलाता हूँ
रास्ते को आसान बनाने
एक गाड़ी वो चलाता है
ज़िंदगी की गाड़ी चलाने

हो जाती है जब रात
मेरी गाड़ी रुक जाती है
पर  होती है उसकी रात तभी
गाड़ी जब  उसकी रुक जाती है

मेरे रास्ते पर रिश्तों से
मुलाकात क्षणिक हो पाती है
उसके रास्ते , मुलाकातों में
क्षणिक  रिश्ते बन जाते हैं

एक ही हैं हम दोनों
हैं दो हिस्से एक कहानी के
मैं हूँ एक ज़िंदगी
टूटे पहिये वाली
वो पहियों पे भागती
एक टूटी हुई ज़िंदगी
…रजनीश (22.05.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....