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Monday, May 23, 2011

एक दिन, माँ के लिए

[ मदर्स डे पर लिखा था , शायद अच्छा न लगे क्यूंकि मदर्स डे       तो बीत चुका…. ]
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आखिर दे ही दिया एक दिन
माँ को भी एक साल में,
कम से कम एक दिन ही सही
सोचा  वो है किस हाल में...

पर  तुम तो रहोगे बच्चे ही
जब भी माँ के करीब होगे,
तुम्हें तो आदत है उससे लेने की
तुम कभी न कुछ  दे सकोगे...

क्या है  माँ को जरूरत
तुम्हारे आभार की,
वो तो खुश होती रही है
करके सेवा परिवार की ...

नौ महीने थे माँ के गर्भ में
तब इस दुनिया में आ सके हो तुम ,
अपने खून से पाला है उसने
तब यहाँ तक पहुँच सके हो तुम ...

उसका प्यार भरा आँचल 
तुम्हें हर मौसम पनाह देता है ,
उसका बस एक दैवीय स्पर्श
तुम्हें जीवन नया देता है ...

साथ सदा है माँ तुम्हारे
हो सुख या हो  दुख ,
माँ का रक्त दौड़ता
तुम्हारी रगों में
माँ की ममता,
माँ की महिमा
कैसे बयां हो
एक पन्ने की लाइन में,
हर पल तुम्हारा
ऋणी हो जिसका
करना चाहते उसे  सीमित 
बस एक दिन  में...
...रजनीश (09.05.2011)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....