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Monday, October 12, 2020

कुछ बातें इन दिनों की


जिंदगी रुक सी गई है
कदम जम से गए हैं 
एक वायरस के आने से
कुछ  पल थम से गए हैं 

कहीं  कब्र नसीब नहीं होती
कोई रातोरात जलाया जाता है
इंसानियत  शर्मसार होती है
उसे एक खबर बनाया जाता है 

कभी होती  नहीं हैं खबरें 
बनाई  जाती हैं
कभी होती नहीं जैसी
दिखाई जाती हैं 

जिसे समझा था दुश्मन
अल्हड़ बचपन का 
बन गया  लॉकडाउन  में
वो जरिया शिक्षण का

पास आने की चाहत
 पर दूर रहने की जरूरत
 किस ने कह दिया जिंदगी से
 मुसीबतें कम हो गई हैं ?

....रजनीश (१२.१०.२०२०, सोमवार)

Tuesday, May 21, 2013

एक पल की दास्ताँ

एक पल
वैसा ही था
जैसे और भी पल थे
पर वो था बिलकुल काला
बाकी श्वेत धवल थे

उस पल का चेहरा
कितना घिनौना
कितना वीभत्स
कितना डरावना
न सुनी किसी ने
उस पल की आहट
न आया  नज़र
घात लगाए कतार में
ना भाँप सका
कोई आता हुआ संकट

पल छुपा रहा
फिर फट पड़ा
एक भारी पल
धमाके  संग गिरा
शोलों में बिखर
फट गया पल
कई ज़िंदगियों के
ख़त्म हुए पल

उस एक पल ने क्रूर होकर
कुछ यूं कर दिया तमाशा
हो गए सब पल अशांत
बदल गई पलों की भाषा
खो गई सब  मुस्कुराहटें
ख़त्म हो गईं पलों की आशा

क्यूँ आया था
वो पल छुपकर
पलों की खुशनुमा किताब में
काला पन्ना क्यूँ जोड़ गया
क्यूँ किया बदरंग उसने
क्यूँ बिगाड़ी तस्वीर सुंदर
पलों का संगीत मधुर
वो  बेसुरा क्यूँ कर गया

उस विनाशकारी पल का
एक टुकड़ा सिसकता मिला
कहा मैं था और पलों जैसा
मुझे संहार से क्या मिला
मुझे भ्रमित किया किसीने
आँखों पर पट्टी थी बांधी जिसने

किसने चढ़ाया था उस पर
विध्वंस का दुष्ट आवरण
किसने भर दिया उस पल में
आतंक का घातक जहर
अपने जैसे पलों का उसे
किसने बना दिया  दुश्मन

था पल के टुकड़े का जवाब
कैसे भूल सकूँगा जनाब
सौंपते खंजर मुझे वो
तुम ही थे पहने नकाब

हम कहते खुद को इंसान
और हैं इंसानियत के दुश्मन
न हम अपना खून पहचानते
न सुनते इंसानियत का क्रंदन

मिटा दो आतंक के साये
इंसानियत को आबाद कर दो
जी सकें खुल कर सभी
इन पलों को आज़ाद कर दो

.......... रजनीश (21.05.2013) 
21st May : Anti Terrorism Day पर विशेष 
It was on this day in 1991 that former Prime Minister 
Rajiv Gandhi was assassinated. 
The objective behind the observance of Anti-Terrorism Day 
is to wean away the people from terrorism and violence.

Saturday, June 30, 2012

कुछ बात बन जाए




(अपनी एक पुरानी रचना --कुछ शेर फिर से )
कैद  हो ना सकेगी बेईमानी चंद सलाखों के पीछे
घर ईमानदारी के  बनें तो कुछ बात बन जाए

मिट  सकेगा ना अंधेरा कोठरी में बंद करने पर
गर एक दिया वहीं जले तो कुछ बात बन जाए

ना   खत्म होगा फांसी से कत्लेआमों का सिलसिला
इंसानियत के फूल खिलें तो कुछ बात बन जाए

बस तुम कहो और हम सुने  है ये नहीं  इंसाफ
हम भी कहें तुम भी सुनो तो कुछ बात बन जाए

हम चलें  तुम ना चलो तो  है धोखा  रिश्तेदारी में
थोड़ा तुम चलो थोड़ा हम चलें तो कुछ बात बन जाए
...रजनीश 

Sunday, June 24, 2012

जंग ज़िंदगी की

एक ज़िंदगी
को बचाने किए
लाखों जतन
लड़ गए समय से
झोंक दिया अपना तन-मन
दिन -रात एक किया
और दिखाया जज़्बा
अपनी कौम को बचाने का
मुसीबतजदा  के काम आने का ...

पर जिसने खोदा गड्ढा 
वो भी इंसान था
खुद्गर्जी और लालच में
जो बन गया शैतान था  

गड्ढे की हैवानियत में
फंसी इंसानियत
घुटती रही
लंबी चली जंग में
एक ज़िंदगी पुकारती रही
हैवानियत थी बुलंद
इंसानियत हारती रही

जिंदगी फिर हार गई
सब रिश्ते तोड़ गई
शहरवालों के लिए
पर एक सबक छोड़ गई ...
.....रजनीश (24.06.2012)

Monday, August 29, 2011

समाधान

2011-08-19 06.56.03
कैद  हो ना सकेगी बेईमानी चंद सलाखों के पीछे
घर ईमानदारी के  बनें तो कुछ बात बन जाए

मिटता नहीं अंधेरा  कोठरी में बंद करने से
एक दिया वहीं जले तो कुछ बात बन जाए

ना   खत्म होगा फांसी से कत्लेआमों का सिलसिला
इंसानियत के फूल खिलें तो कुछ बात बन जाए

बस तुम कहो और हम सुने  है इसमें नहीं  इंसाफ
हम भी कहें तुम भी सुनो तो कुछ बात बन जाए

हम चलें  तुम ना चलो तो  है धोखा  रिश्तेदारी में
थोड़ा तुम चलो थोड़ा हम चलें तो कुछ बात बन जाए
.....रजनीश (29.08.2011)

Wednesday, July 20, 2011

एक नई कहानी

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हुई ख्वाबों ख़यालों की बातें पुरानी
सुनाता हूँ तुमको आज की है कहानी

अब होते नहीं प्यार में ढाई आखर
न मजनूँ परवाना न लैला दीवानी

खो गया  बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी

हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में  छाई है वीरानी

होली रोज़ लहू की   मौत के पटाखे  चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी

न शराफत  न गैरत न इज्जत न मुहब्बत
हैवानियत का मज़ा  इंसानियत की है परेशानी

......रजनीश (19.07.2011)

Friday, May 27, 2011

लार्जर देन लाईफ

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बैट मैन,
सुपर मैन,
स्पाइडर मैन,
बच्चे-बड़े सभी हैं फैन ...

बचपन में ही इनसे
मिल जाती है ये सीख
कि बुराई को ख़त्म करना
आम आदमी के बस
की बात नहीं,
क्यूंकि कर सके
मुक़ाबला पहाड़ जैसी
हैवानियत का ,
खत्म कर दे उसे,
आम आदमी में
इतनी ताकत नहीं...

कुछ कौतूहल , कुछ रोमांच
और सपने इंसानियत के
देख सकें दिन में नैन
इसीलिए बनाए हमने 
बैट मैन,
सुपर मैन,
स्पाइडर मैन...
...रजनीश (15.05.11)

Sunday, April 17, 2011

एक सपने की बात

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सपना तो बस सपना   होता है,
जैसा भी हो ये अपना होता है,
पर जो टूट जाये वो सपना कैसा..
पूरा सच हो जाये वो सपना कैसा..

सपना वही जो सपना ही रहे,
हरकदम जो तुम्हारे संग चले,
ना  टूटे , ना तोड़े , ना पूरा मिले,
साँसे दे तुम्हें, बढ़ाए हौसले..

लगो दिल से  सच करने उसे,
जो  कभी खत्म नहीं होता है,  
इंसानियत से जीना भी,
ऐसा ही सपना होता है ...
...रजनीश (17.04.11)

Tuesday, February 8, 2011

परिवर्तन

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अब तुतलाता नहीं, पर बोलता नहीं हूँ,
अब  रोता नहीं , पर हँसता नहीं हूँ,
अब चीखता नहीं, पर शांत नहीं हूँ,
अब रूठता नहीं, पर मानता नहीं हूँ,
अब पूछता नहीं, पर जानता नहीं हूँ,
अब रटता नहीं, पर सीखता नहीं हूँ ,
अब गिरता नहीं, पर उठता नहीं हूँ,
अब छीनता नहीं , पर देता नहीं हूँ,
अब चुराता नहीं, पर बांटता नहीं हूँ,
अब तोड़ता नहीं, पर जोड़ता नहीं हूँ,
अब लड़ता नहीं, पर जुड़ता नहीं हूँ,
अब मारता नहीं, पर बचाता नहीं हूँ,
अब बेसुरा नहीं, पर गाता नहीं हूँ,
अब गुमता नहीं , पर मिलता नहीं हूँ,
अब  छोटा नहीं , पर बड़ा नहीं हूँ...
...........................
बड़ा लंबा है इन्सानियत के घर का रास्ता !
चल तो रहा हूँ इस पथ में , पर आगे बढ़ता नहीं हूँ ....
........रजनीश (08.02.11)

Saturday, January 15, 2011

सूर्य वंदना

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हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
बहुत हो गया कलुषित जीवन,
अब करो धवल  ऊर्जा संचार ।

सुबह, दुपहरी हो या साँझ,
फैला है हरदम अंधकार । 
रात्रि ही छाई रहती है,
नींद में जीता है संसार । 

तामसिक ही दिखते हैं सब,
दिशाहीन  प्रवास सभी ।
आंखे बंद किए फिरते हैं...
निशाचरी व्यापार सभी ।

रक्त औ रंग में फर्क न दिखे,
भाई को भाई   न देख सके ।
अपने  घर में ही  डाका डाले,
सहज कोई पथ पर चल न सके ।

हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
भेजो मानवता किरणों में, 
पशुता से व्याकुल संसार ।
....रजनीश (15.01.11) मकर संक्रांति पर
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....