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Tuesday, September 6, 2011

तुम्हारा गुरु

2011-08-19 06.57.39
कोख में रख तुम्हें कष्ट सह  है जनमती
दूध-लोरी-दुलार से तुम्हारा पालन जो करती
सींच कर अपना खून भूलकर अपना सबकुछ
जो बड़ा तुम्हें करती वो तुम्हारी गुरु है

अंगुली के सहारे जो है चलना सिखाता
गोद में बिठा अपनी तुम्हें कहानी सुनाता
हिस्से को अपने सही-गलत का समझा अंतर
जो  पैरों पे खड़ा करता वो तुम्हारा गुरु है

स्लेट पर चाक रख जो पहला अक्षर लिखाता
किताबों की दुनिया से तुम्हारा परिचय कराता
धर्म-अर्थ-कला-विज्ञान में जो पारंगत तुम्हें कर 
जीवन चलाना सिखाता वो तुम्हारा गुरु है

है तुम्हारे सुख-दुख में जो सदा साथ रहता
दोस्त या हमसफर बन के दिल में जो बसता
संबल बन तुम्हारा चिंता तुम्हारी हर कर जो
हर रस्ता आसां करता वो तुम्हारा गुरु है

दिल का एक टुकड़ा अंश है जो तुम्हारा 
तुम्हारे सपनों को सच करने आया जो दुलारा
नई पौध का प्रतिनिधि नई सोच तुम्हें देकर
नए चिराग जो दिखाता वो तुम्हारा गुरु है

जो है भीतर तुम्हारे एक दीपक सा जलता
अंधेरी डगर तुम्हारी हरदम रोशन जो करता
कोलाहल में अंदर की आवाज   बनकर तुम्हें
तूफानों में खड़ा रखता वो तुम्हारा गुरु है

(हर-क्षण हर-कण सजीव या निर्जीव
प्रकृति का हर अंश ही तुम्हारा गुरु है )
...रजनीश (06.09.2011)
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