Showing posts with label संगीत. Show all posts
Showing posts with label संगीत. Show all posts

Monday, May 27, 2013

जैव विविधता










सूरज की श्वेत किरणों में
समाये हैं सब रंग
किरणों के अभाव में है
काला भयावह अंधेरा
श्वेत और काले आयामों के बीच
सांस लेती है एक खूबसूरत तस्वीर
सूरज चलाता है ब्रश
मिला सब रंगों को इक संग
श्वेत किरणें बरसती
धरती के कैनवास पर
और सांस लेते रंग चहुं ओर
बिखेरते इंद्रधनुषी छटा
एक ऐसा कैनवास 
जो फैला जल थल और नभ पर 
सुंदरता जन्म लेती है
इस विविधता में 
और साँसे लेता है जीवन
अपने असंख्य स्वरूपों में
एक रंग का अस्तित्व और
उसकी सुंदरता
दूसरे रंग के होने में है
हर रंग जरूरी है
प्रकृति का हर रूप जरूरी है
संगीत की पूर्णता में
लगता है हर सुर
सुर हैं स्पंदन हृदय का
जीवन का अंतरनाद
हर तरंग हर ताल हर स्वर
जुड़े है ज़िंदगी के रूपों से
जीवन संगीत है
हर सुर जरूरी है
जीवन का हर रूप जरूरी है
जीवन के पल रंगबिरंगे 
विशिष्ट गंधों से सुवाषित
अपनी सुर ताल में नाचते
बनाते तस्वीर एक जीवंत
सूरज ने दी श्वेत किरणें
ताकि मिले सब रंग
ना रह जाए तस्वीर अधूरी
इसलिए कोशिश करें
बटोरें बचाएं हर रंग
ताकि तस्वीर बने पूरी

.......रजनीश (27.05.2013)

बायोडायवर्सिटी यानि 
"जैव विविधता " को समर्पित 
The International Day for Biological Diversity 
(or World Biodiversity Day) is a United Nations
sanctioned international day for the promotion of biodiversity issues

Wednesday, March 13, 2013

झूठे सपनों के पार

















है सूरज निकल पूरब से
 जाता हर रोज़ पश्चिम की ओर
पानी लिए नदियां हर पल
हैं मिलती रहती सागर में

बादल बरस बरस कर
करते रहते हैं वापस
जो धरती से लिया,
हर साल हरी हरी चादरें
ढँक लेती है धरती को इक बार
एक नृत्य हर वक्त
चलता रहता है
संगीत की लहरों पर

बदलते रहते हैं पत्ते
और बदलते पेड़ भी
देखती हैं बदलती फसलों को
खेत की मेड़ भी
ज़िंदगी हर पल लेती  सांस
फूटती कोपलों, पेड़ की डालों में
घोसलों, माँदों में पनपती असल ज़िंदगी
ना है ख्वाबों ना ख़यालों में

सब कुछ कितना नियत
कितना सरल
एक रंग बिरंगा चक्र
पर नहीं जाती मिट्टी की खुशबू
बंद नहीं होता चहकना
बंद नहीं होती पानी की कलकल
बंद नहीं होता पत्तों का हवा संग उड़ना
नहीं फीका पड़ता और
नहीं बदलता कोई भी रंग
सब कुछ वैसा ही खूबसूरत
रहा आता है समय की परतों में

पर  अंदर इस संसार के
है  संसार  और एक
बहुत अजीब और बहुत ही गरीब
जहां रुक जाया करता है  सूरज
सुबह नहीं होती कभी कभी
और कभी बहुत जल्दी आ जाती है शाम
जहां सावन में भी हो जाता है पतझड़
जहां दिन के उजाले में भी अक्सर
नहीं धुल पाता रात का अंधेरा
जहां नृत्य में भी बस जाता है शोक
जहां से  नज़र नहीं आता आँखों को
कायनात का खूबसूरत खेल
जहां नहीं सब कुछ सरल और सीधा
जहां है बहुत कुछ बनावटी
जहां बदरंग लगते नज़ारे
जहां गीत नहीं देता राहत

अजीब सी बात है
जब भी इस झूठी चहारदीवारी
को लांघने की कोशिश करता हूँ
कभी खुद लौट जाते हैं पैर
कभी कोई पकड़कर
खींच लेता है वापस
और मैं खड़ा  इस गरीब
और झूठे संसार से
झांक-झांक बाहर
यही सोचता हुआ हैरान हूँ
कि टूट क्यूँ नहीं जाती
ये मोटी-मोटी दीवारें
ताकि सामने के उस असली संसार से
महक लिए ठंडी मंद बयार
मुझ तक भी आ पहुँचती
और हर सुबह सुबह ही होती
और हर शाम होती एक शाम ...
रजनीश (13.03.2013)  

Wednesday, March 7, 2012

आई होली है

***********
आई होली है...
***********

रंगों में रंग
चढ़ा मौसम की भंग
लिए दिल में तरंग
आई होली है..

उड़े रंग और गुलाल
बचे ना कोई गाल
हर गली में धमाल
आई होली है..

उठी मन मे उमंग
थिरके सब संग
अब काहे की जंग
आई होली है..

गाओ खुशियों के गीत
सुनो सुंदर संगीत
उठी मन में है प्रीत
आई होली है..

बजे ढ़ोल मृदंग
कोई दिल न हो तंग
चलो मस्ती के ढंग
आई होली है..

लग जाओ गले 
कैसे शिकवे गिले 
दिल से दिल हैं मिले 
आई होली है.. 

रंगा तू मेरे रंग 
रंगा मैं तेरे रंग 
रंग खेलें सब संग 
आई होली है ...
....रजनीश (07.03.2012)
होली पर

आप सभी को  होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

Saturday, December 3, 2011

आमंत्रण

DSCN5102
घूमती है धरा सूरज के चहुं ओर
चंदा लगाता है धरा के फेरे
पेड़ करते हैं जिसे छूने की कोशिश 
मुंह किए रहती है सूरजमुखी
उस सूरज की ओर

उड़ते है पंछी बहता है पानी
चलती है हवा होती है बरखा
बदलते हैं मौसम
हर कोने पर  होती है
बीतते समय की छाप
जो लौट लौट कर आता है
एक निरंतरता और
एक पुनरावृत्ति
एक नाद जिसकी अनुगूँज हर कहीं
एक स्वर लहरी जो बहती है हर कहीं
सूरज चाँद तारे और धरा
कोई तारा टूटा तो कोई तारा जन्मा
सभी करते नृत्य निरंतर
गाते हैं सभी
ब्रम्हान्डीय संगीत ...

इधर हम धरा के सीने में
अपना शूल चुभाते 
पानी की दिशा मोड़ते
पंछियों के घर तोड़ते 
फैलाते हैं दुर्गंध  और कोलाहल
हम सूरज के साथ नहीं चलते
हमारी दिशा विनाश की दिशा है
हमारा रास्ता विध्वंस का है
जैसे हम इस सुर-संगम का हिस्सा नहीं !

अच्छा लगता है
हमें कृत्रिम वाद्यों की धुन पर
गाना और  नाचना
क्यूंकि  होते हैं हम उस वक्त
प्रकृति के करीब उसी के अंश रूप में
एक क्षणिक आनंद
और फिर से नीरस दिनचर्या
हमें एहसास नहीं
निरंतर गूँजते
संगीत का 
क्यूंकि  हमने रख लिए हैं
 हाथ कानों पर
और पैरों में बेड़ियाँ डाली हैं
हमारे पाँवों को
 नहीं आता थिरकना
प्रकृति के सुर, लय और ताल पर
जो जीवित है गुंजायमान है
हर क्षण और हर कण में

आओ, अपना रास्ता मोड़ लें हम
प्रकृति के साथ प्रकृति की ओर आयें
नैसर्गिक संगीत में हरदम थिरकें
और  उत्सव का हिस्सा बन जाएँ  ...
....रजनीश (03.12.2011)

Saturday, November 5, 2011

पियानो - एक चित्र

काली सफ़ेद
दहलीज़ें सुरों की,
साल दर साल
हर रोज़ अंगुलियाँ
जिन्हें पुकारती हैं
और हल्की सी आहट सुन
सुर तुरंत फिसलते बाहर चले आते हैं
कभी नहीं बदलती दहलीज़ सुरों की
और मिलकर एक दूजे से
हमेशा बन जाते हैं संगीत
जो उपजता है दिल में ,
पियानो पर चलती अंगुलियाँ
कभी साथ ले आती हैं तूफान
कभी ठंडी चाँदनी रात की खामोशी,
दिल की धड़कनें अंगुलियों पर
नाचती है सुरों के साथ
फिर पियानो बन जाता है दिल,
एक विशाल सागर
जिसकी लहरों पे सुरों की नाव
में तैरते हैं जज़्बात ...
एक दर्पण दिल का
वही लौटाता है
जो हम उसे देते हैं ...
....रजनीश (04.11।2011)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....