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Sunday, February 19, 2012

दूर दर्शन


कुछ आंसू जो कैद थे 
एक रील में 
सिसकियों के साथ 
तरंगों में बह जाते हैं  
जब चलती है वो रील 
सारे लम्हे संग आंसुओं के 
हवा में हो जाते हैं प्रसारित 
एक तरंग में 
उन्हें महसूस कर 
कैद करता है एक तार
और मेरे दर तक ले आता है 
काँच की इक दीवार के पीछे 

एक माध्यम में प्रवाहित हो 
एक किरणपुंज आंदोलित होता है  
और काँच की उस दीवार पर 
नृत्य करने लगती हैं 
प्रकाश की रंग बिरंगी किरणें 
नाचते नाचते 
टकराती हैं आकर 
एक पर्दे से 
मेरी आँखों के भीतर 

जन्म होता है  
एक तरंग का 
जो भागती है 
मस्तिष्क की ओर
उसका संदेश 
लाकर सुनाती है 
मेरी आँखों को 
कुछ आँसू 
ढलक जाते हैं 
मेरी आँखों से 
और आ गिरते हैं 
हथेली पर
और इस तरह
पूरा होता है 
रील में बसे 
आंसुओं का सफर 
  
.....रजनीश (19.02.12)
टीवी देखते हुए

Sunday, December 11, 2011

चंद्र ग्रहण

कुछ यूं 
हुआ था चाँद के साथ
कि चलते चलते
 कुछ पल चाँद खो गया था,
पूनम की रात 
चाँद के बिना 
सेज पर इंतज़ार करती रही 
दुल्हन की तरह 
कुछ पलों को जलती रही 
था मजबूर चाँद 
ये वफ़ा थी रस्तों से 
एक करार  था 
सफर के साथियों से  
उसे निभाना था
जो डगर थी उसपर 
ही जाना था ,

रास्ते  ही कुछ
 ऐसे होते  हैं 
कि कभी कभी 
अपना वजूद 
ही गुम जाता है 
खो जाती है मुस्कुराहट 
साथ निभाते-निभाते 
उखड़ जाते हैं पैर 
और दिल भी टूट जाता है, 

वक्त की आंधी के बाद 
पर  चाँद फिर से 
 निकल अंधेरे से 
चाँदनी का घूँघट 
हौले से हटाता है 
और  मीठा सा 
अहसास होता है 
कि दर्द भरा पल 
जो ठहरा सा लगता है 
सदा साथ नहीं रहता 
गुजर ही जाता है 
....रजनीश (11.12.11)

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