क्या बस कहने से आ जाएगा इंकलाब 
क्या मोमबत्तियों में कहीं छुपा है इंकलाब 
क्या एक जगह जुट जाने से आ जाएगा 
क्या बाज़ार में मिलती कोई चीज़ है इंकलाब 
क्या किसी घर में छुपा है इंकलाब 
क्या चंद लोगों का गुलाम है इंकलाब 
क्या सब कुछ तोड़ देने पर मिल जाएगा 
क्या बस चेहरा बदल लेना है इंकलाब 
क्या सिर्फ औरों से कुछ चाहना है इंकलाब
क्या लकीरें पीटने से आ जाता है इंकलाब 
क्या दूसरों पर मढ़ देने से हो जाएगा 
क्या दूसरों को बदल देना है इंकलाब 
अब हो तुम किसी के गुलाम नहीं 
सिर्फ अपनी ही मर्जी के मालिक हो 
अब तोड़ने और मुखालफत करने से नहीं 
सिर्फ खुद को बदलने से आएगा इंकलाब   
              ......रजनीश (22.01.2013)