Showing posts with label होली. Show all posts
Showing posts with label होली. Show all posts

Sunday, March 24, 2024

होली


गुलालों के गुबार में 
रंगों की बौछार में
रंगों जैसे हम खिले 
आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

गीतों की बहार में 
ठहाकों के अंबार में
खुशियों जैसे हम खिलें 
आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

मस्ती के खुमार में
थिरकते संसार में 
नाचते गाते हम चलें
आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

प्यार की बहार में 
दोस्ती की बयार में 
दोस्तों जैसे सब मिलें
आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

ना शिकवे ना शिकायतें
ना दुश्मनी ना अदावतें
ना झगड़े ना झंझटें
बस प्यार ही प्यार बंटे 
अपनों जैसे सब लगें
आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

आओ हम सब गले मिलें 
होली के त्यौहार में...

होली की हार्दिक शुभकामनाएं.....
रजनीश (२४ मार्च २०२४)








Friday, March 6, 2015

आओ खेलें होली ...

.


रंग लगे भंग चढे
अबीर और गुलाल उड़े
खेलें सब मिलके
रंग भरी होली

ढ़ोल बजे रंग सजे
नाचें सब धूम मचे
खेलें सब मिलके
उमंग भरी होली

रंगों से राह पटे
गुझिया मिठाई बंटे
खेलें सब मिलके
स्वाद भरी होली

प्यार बढ़े बैर घटे
बेरंग ना कोई बचे
खेलें सब मिलके
खुमार भरी होली

हाथों में रंग लिए
दिल से आज दिल मिलें
खेलें सब मिलके
प्यार भरी होली

....रजनीश (06.03.15) 
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.... 

Sunday, March 16, 2014

खोज प्यार के रंग की ...

.
रंग बिरंगी दुनिया में
रंग भरे मौसम में
रंगों के मेले में
एक रंग ढूँढता हूँ मैं

रंग बिरंगे चेहरों में
रंगीन गलबहियों में
रंग गई मिठाइयों में
एक रंग ढूंढता हूँ मैं

रंग लगी गलियों में
रंग लगे नगाड़ों में
रंग भरी दीवारों में
एक रंग ढूँढता हूँ मैं

रंग भरी पिचकारी में
रंग से सनी मिट्टी में
रंग सजी दुकानों में
एक रंग ढूँढता हूँ मैं

रंगों की भीड़ में
भंग की तरंग में
होली के रंग में
एक रंग ढूँढता हूँ मैं ...
........रजनीश ( 16.03.2014)
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ 


Sunday, March 18, 2012

कुछ दिल की ...कुछ रंगों की

छूट गए हर चेहरे से 
रंग होली के,
कुछ तो
यूं ही उतर गए
और कुछ रंगों को
देखा उतारते जबरन,
होली के कपड़े
रख दिये सबने
एक कोने में
साथ ही उस पर लगे
रंगों को भी दे दी
साल भर की कैद,

पर अब भी 
उतरी नहीं मेरी होली,
सब के संग
नाचने गाने और
मस्ती में सराबोर होने
का मन अब भी करता है
दिल के एक कोने में
गूँजती है फाग अब भी ,

सड़क पे भी
ज़िंदगी की आवाजाही
ने चंद दिनों में ही
मिटा दिये
होली के सब निशान,
हवा में भी
अब खुमार नहीं होली का
नहीं दिखता अब कोई
गले लगता और खिलखिलाता,
रंग लिए फिरता हूँ
पर कोई नहीं मिलता
जो बाहें फैलाए
अपने गाल आगे कर दे,
मैं रंगों को हवा में
उछाल कर खुद ही नहाता हूँ
और भटकता हूँ गली-गली
कि मिल जाए
कोई पागल मुझसा....
......रजनीश (17.03.11)

Wednesday, March 7, 2012

आई होली है

***********
आई होली है...
***********

रंगों में रंग
चढ़ा मौसम की भंग
लिए दिल में तरंग
आई होली है..

उड़े रंग और गुलाल
बचे ना कोई गाल
हर गली में धमाल
आई होली है..

उठी मन मे उमंग
थिरके सब संग
अब काहे की जंग
आई होली है..

गाओ खुशियों के गीत
सुनो सुंदर संगीत
उठी मन में है प्रीत
आई होली है..

बजे ढ़ोल मृदंग
कोई दिल न हो तंग
चलो मस्ती के ढंग
आई होली है..

लग जाओ गले 
कैसे शिकवे गिले 
दिल से दिल हैं मिले 
आई होली है.. 

रंगा तू मेरे रंग 
रंगा मैं तेरे रंग 
रंग खेलें सब संग 
आई होली है ...
....रजनीश (07.03.2012)
होली पर

आप सभी को  होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

Saturday, November 26, 2011

छलावा

2011-11-15 17.34.22
तुम्हें जो खारा लगता है
वो सादा पानी होता है
समझते हो कि आँखों से
मेरा ये दिल टपकता है
मेरे आँसू क्या सस्ते हैं
गैरों के दर्द पर रोएँ
दिल नहीं दिखावा है
वही भीतर से रोता है

फंसा तो खुद में ही मैं हूँ
मुझे तो फिक्र अपनी है
परेशां खुद से ही मैं हूँ
तुम्हारी सुध मैं कैसे लूँ
मुझे फुर्सत कहाँ तुम्हारी
तकलीफ़ों पर मैं  रोऊँ
मेरा करम मेरे सीने में
हर दिन दर्द पिरोता है

होता वो नहीं  हरदम
नज़रों से  जो दिखता है
छलावा है जहां, जिसमें
भरम का राज होता है
खेलते हो  जब भी होली
किसी की सांस छीन कर तुम
लाल वो रंग नहीं होता
किसी का खून होता है

खुद को दोष क्या दूँ मैं
शिकायत क्या तेरी  करूँ
मुझे हर कोई मुझ जैसा
खुद में खोया लगता है
था बनने चला जो ईंसां
ज़िंदगी की राहों पर
जानवर रह गया बनकर
हरदम अब ये लगता है
.....रजनीश (26.11.2011)

Wednesday, July 20, 2011

एक नई कहानी

DSCN6815
हुई ख्वाबों ख़यालों की बातें पुरानी
सुनाता हूँ तुमको आज की है कहानी

अब होते नहीं प्यार में ढाई आखर
न मजनूँ परवाना न लैला दीवानी

खो गया  बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी

हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में  छाई है वीरानी

होली रोज़ लहू की   मौत के पटाखे  चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी

न शराफत  न गैरत न इज्जत न मुहब्बत
हैवानियत का मज़ा  इंसानियत की है परेशानी

......रजनीश (19.07.2011)

Thursday, March 24, 2011

सड़क और सफर

DSCN3905
शहर की दीवारों
पर पड़े छींटे
गवाह हैं  होली से हुई मुलाक़ात के
जो गुजरी हाल ही,  मेरे शहर  की सड़कों से होकर,
कल मै था एक सड़क पर,
जिसके  सीने पर भी
दिखे कुछ सुर्ख लाल निशान,
होली ने कहा   मेरे तो नहीं, 
ये गवाह निकले 
एक मुसाफ़िर की मौत के,
जिसका सफ़र सड़क पर
ही ख़त्म हो गया था,
और एक पल में ही शुरू कर लिया था
उसने एक नया सफ़र,
सड़क ने कहा,
मुझे तो इस रंग से कोई प्यार नहीं,
मेरा  होली से कोई रिश्ता नहीं,
न ही कोई प्यास मुझे,
ये तुम्हारा अपना
तुम लोगों की ही अंधी दौड़
और पागलपन का शिकार है,
क़िस्मत को क्यूँ खड़े करते हो कटघरे में,
ये तो वक्त को पीछे छोड़
आगे निकलने  की कोशिश का नतीजा है,
मैं सड़क पर बढ़ता  रहा  ,
और आगे भी लाल धब्बे मिलते रहे
मैं सोचता रहा कि
आखिर  सड़क की बात
पर हम गौर क्यूँ नहीं करते ?
...रजनीश (24.03.11) 

Monday, March 21, 2011

होली के बाद

DSCN3874
क्या बताऊँ तुम्हें,
क्या खूब होली थी ,
क्या रंग चढ़ाया था यारों ने ,
सबको गले लगाया,
उसे भी सराबोर किया रंगों में,
याद नहीं गुलाल लगे
कितने गुझिए खा गया मैं,
नंगे पैर भंग की तरंग में
नाचता रहा  नगाड़े के फटने तक,
और फिर नशे को फाड़ा घंटों बैठ,
नींबू और पता नहीं क्या-क्या ...
जुगत तो बहुत लगाई थी
कि रंग कोई ना चढ़े,  पर
ज़ालिमों ने न जाने कौन सा रंग लगाया था,
चार घंटे घिस-घिस के जब छिल गई चमड़ी
तब कहीं उतरे ये रंग,
बड़ी मेहनत के बाद उतरी होली ,
देखो एक कण भी नहीं बचा
अब किसी रंग का ...
तुम नहीं कह पाओगे अब मुझे देख
कि वो जो झूम रहा था,
रंगों में डूबा जो प्रेम बाँट रहा था,
रंगों में घुल सब के संग-
एक हो गया था
वो मैं था ,
नहीं ,अब मुझे देख यह तुम कह नहीं पाओगे ...
कि मैंने होली खेली थी ...
  ...रजनीश (21.03.11)

Saturday, March 19, 2011

होली के रंग

DSCN3872
दिल से लगाओ रंग कभी खत्म नहीं होंगे....

आओ, ये  रंगो का मौसम है ,
खेलें इनसे और घुल-मिल जाएँ
इन रंगों में ,
केवल टीके और पिचकारी से नहीं
रंगों की बौछारों से खेलें ,
दोनों हथेलियों में भर-भर कर
अबीर-गुलाल उड़ाएँ ,
खुल जाएँ और पूरें भीगें,
महसूस करें इन रंगों को ... 
ये पल हैं सराबोर होने के,
पूरा-पूरा रंगने के पल हैं  ...
अच्छी तरह रंगने के लिए
करीब आना होता है ,
दीवारें तोड़नी होती हैं,
पूरी तरह रंगों में डूब जाने पर ही
लगते हैं सभी इक रंग में रंगे,
और तब असली रंग उतरता है दिल में...
प्रतीकों में नहीं ,
दिल खोल कर खेलें सभी,
सबसे मिलें ,सबमें मिल जाएँ ...एकरंग 
और ये त्यौहार बस चलता रहे...
...रजनीश (19.03.2011)
 (होली की शुभकामनाएँ ! )
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....