जहां रहता हूँ मैं, है वो इक दुनिया,
जहां घर तुम्हारा , वो भी इक दुनिया...
देखा था जिसे ख्वाब में , वो इक दुनिया,
हक़ीक़त में जो मिली , वो भी इक दुनिया...
था छोड़ा कल जिसे, वो इक दुनिया,
कल मिलूँगा जहां तुमसे, वो भी इक दुनिया...
बाहर मिली जो मुझसे, वो इक दुनिया,
ज़िंदा जो मेरे भीतर , वो भी इक दुनिया...
है तेरी और मेरी, साझा वो इक दुनिया,
है ना तेरी और ना मेरी , भी इक दुनिया !
तेरी दुनिया के अंदर मेरी, वो इक दुनिया,
मेरी दुनिया के अंदर तेरी, भी इक दुनिया...
जो मेरे कदमों तले कुचली, वो थी इक दुनिया,
जिसे हाथों में है सम्हाला , ये भी इक दुनिया ...
.....रजनीश (20.02.2011)