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Sunday, February 20, 2011

दुनिया

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जहां रहता हूँ  मैं, है वो  इक दुनिया,
जहां घर तुम्हारा  , वो भी इक दुनिया...

देखा था जिसे ख्वाब में ,  वो इक दुनिया,
हक़ीक़त में जो मिली ,  वो भी इक दुनिया...

था छोड़ा कल जिसे,  वो इक दुनिया,
कल मिलूँगा जहां तुमसे,  वो भी इक दुनिया...

बाहर  मिली जो मुझसे,  वो इक दुनिया,
ज़िंदा जो मेरे भीतर , वो भी इक दुनिया...

है तेरी और  मेरी, साझा वो इक दुनिया,
है ना तेरी  और ना मेरी ,  भी इक दुनिया !

तेरी दुनिया के अंदर मेरी, वो  इक दुनिया,
मेरी दुनिया के अंदर  तेरी, भी इक दुनिया...

जो मेरे कदमों तले कुचली, वो थी इक दुनिया,
जिसे  हाथों में है सम्हाला , ये भी इक दुनिया ...
.....रजनीश (20.02.2011)
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