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Sunday, November 29, 2015

धुंध

अब सूरज को
रोज ग्रहण लगता है
सूरज लगता है निस्तेज
सूरज की किरणों पर तनी
इक  चादर मैली सी
जिसे ओढ़ रात को  चाँदनी भी
फीकी होती दिन-ब-दिन
धुंध की चादर फैली
सड़कों गलियों से
जंगलों और पहाड़ों तक
कराती है एहसास
कि हम विकसित हो रहे हैं ...
....रजनीश (29.11.15)



Thursday, June 20, 2013

ये तय नहीं ...


तय है कि, धरती का सूरज
निकले है पूरब से
पर मेरा भी सूरज, पूरब से निकले
ये तय नहीं....

तय है कि, रात के बाद
आती है एक सुबह
पर हर रात की , एक सुबह हो,
ये तय नहीं....

तय है कि, पानी भाप होकर
बन जाता है बादल
पर उमड़-घुमड़ कर यहीं आ बरसे  
ये तय नहीं....

तय है कि, बिन आँखों के
नज़ारा दिख नहीं सकता
पर आंखों से सब दिख जाएगा
ये तय नहीं ....

तय है कि, ज़िंदगी पूरी हो
तो आ जाती है मौत,
पर मौत से पहले मौत ही ना हो
ये तय नहीं ....

तय है कि, ज़िंदगी पूरी हो
तो आ जाती है मौत,
पर मौत होने से कोई मर ही जाए
ये तय नहीं ....

तय है कि, मेहनत का फल
मीठा होता है
पर हर मेहनत का फल निकले
ये तय नहीं...

ये तय है कि, प्यार भरी हर अदा
खूबसूरत होती है
पर खूबसूरत अदा प्यार ही होगी  

ये तय नहीं ...
...........रजनीश (20.06.2013)

Monday, May 27, 2013

जैव विविधता










सूरज की श्वेत किरणों में
समाये हैं सब रंग
किरणों के अभाव में है
काला भयावह अंधेरा
श्वेत और काले आयामों के बीच
सांस लेती है एक खूबसूरत तस्वीर
सूरज चलाता है ब्रश
मिला सब रंगों को इक संग
श्वेत किरणें बरसती
धरती के कैनवास पर
और सांस लेते रंग चहुं ओर
बिखेरते इंद्रधनुषी छटा
एक ऐसा कैनवास 
जो फैला जल थल और नभ पर 
सुंदरता जन्म लेती है
इस विविधता में 
और साँसे लेता है जीवन
अपने असंख्य स्वरूपों में
एक रंग का अस्तित्व और
उसकी सुंदरता
दूसरे रंग के होने में है
हर रंग जरूरी है
प्रकृति का हर रूप जरूरी है
संगीत की पूर्णता में
लगता है हर सुर
सुर हैं स्पंदन हृदय का
जीवन का अंतरनाद
हर तरंग हर ताल हर स्वर
जुड़े है ज़िंदगी के रूपों से
जीवन संगीत है
हर सुर जरूरी है
जीवन का हर रूप जरूरी है
जीवन के पल रंगबिरंगे 
विशिष्ट गंधों से सुवाषित
अपनी सुर ताल में नाचते
बनाते तस्वीर एक जीवंत
सूरज ने दी श्वेत किरणें
ताकि मिले सब रंग
ना रह जाए तस्वीर अधूरी
इसलिए कोशिश करें
बटोरें बचाएं हर रंग
ताकि तस्वीर बने पूरी

.......रजनीश (27.05.2013)

बायोडायवर्सिटी यानि 
"जैव विविधता " को समर्पित 
The International Day for Biological Diversity 
(or World Biodiversity Day) is a United Nations
sanctioned international day for the promotion of biodiversity issues

Wednesday, February 15, 2012

तुम्हारा ही नाम











सुबह की सुहानी ठंड
बिछाती है ओस की चादर
घास पर उभर आती है
एक इबारत
हर तरफ
दिखता है बस
तुम्हारा ही नाम

राहों से गुजरते
वक़्त की धूल
चढ़ जाती है काँच पर
पर हर बार
गुम होने से पहले
इन उँगलियों से
लिखवा लिया करती है
तुम्हारा ही नाम

एक पंछी अक्सर
दाना चुगते-सुस्ताते
मुंडेर पर छत की
गुनगुनाता और बतियाता है
और वहीं पास बैठे
पन्नों पे ज़िंदगी उतारते-उतारते
उसकी चहचहाहट में
मुझे मिलता है बस
तुम्हारा ही नाम

सूरज को विदा कर
जब होता हूँ
मुखातिब मैं खुद से
तो बातें तुम्हारी ही होती हैं
और फिर थपकी देकर
लोरी गाकर जब रात सुलाती है
तो खो जाता हूँ सपनों में
सुनते सुनते बस
तुम्हारा ही नाम
......रजनीश (15.02.2012)

Wednesday, November 30, 2011

ज़िंदगी की दौड़

2011-10-30 17.08.26
शुरू होता है हर दिन
अजान की आवाज़ से
चिड़ियों की चहचहाहट
कुछ अंगड़ाइयों में
विदा होती रात से बातें
फिर धूप की दस्तक
और मंदिर के घंटे
अब लगते हैं दौड़ने
हम एक सड़क पर
जो बस कुछ देर ही सोती है
कानों में घुलता
सुबह का संगीत
कब शोर में बदल जाता है
पता ही नहीं चलता

सूरज के साथ
होती है एक दौड़
और दिनभर बटोरते हैं हम
कुछ चोटें, कुछ उम्मीदें
कुछ अपने टूटे हिस्से
और कुछ चीजें  सपनों की खातिर
पर साथ  इकठ्ठा होता ढेर सारा
बेवजह कचरा और तकलीफ़ें
जो  दौड़ देती है हमें
ये कीमत है जो चुकानी पड़ती है
दौड़ में बने रहने के लिए
एक  अंधी दौड़ 
एक मशीनी कारोबार
एक नशा
जो पैदा होता है
एक सपने की कोख में
और फिर उसे ही खाने लगता है
दौड़ में हमेशा सूरज जीतता है
कूद कर जल्दी से पहुँच जाता है
पहाड़ के पीछे
और जब हम पहुँचते है अपने घर
हाँफते-हाँफते और खुद को बटोरते
दरवाजे पर रात मिलती है
खुद को पलंग पर
पटक कर कब सो जाते हैं
कब खो जाते हैं
पता ही नहीं चलता ...

बहुत थका देता है सूरज ....
सूरज तो कभी नहीं कहता
दौड़ो  मेरे साथ,
तो क्या लालच..
नहीं वो तो बीच रास्ते मेँ
साथ हो लेती है,
दरअसल हमें प्यार दौड़ता है ...
...रजनीश (30.11.2011 )

Friday, August 26, 2011

खोने का अर्थशास्त्र

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सूरज की रोशनी में
चमकता एक खूबसूरत फूल
बिखेरता है खुशबू
बस एक स्वार्थ उसका
कि और लग सकें फूल कहीं
पर जबर्दस्ती नहीं करता कभी ,
कल कल बहता झरना
एक बूंद पानी भी
नहीं रखता अपने लिए
पानी का बह जाना
ही है उसका होना
आकाश में उड़ता बादल
एक-एक बूंद बरस जाता है
आखिरी बूंद के साथ
हो जाता है खत्म
पर वो बरसता है 
ताकि बन सके एक बार फिर से
किसी छत पर बरसने के लिए
पर हम कुछ सीख न सके
फूल से , झरने से , बादल से
और बस लड़ते हैं
अपने अस्तित्व
अपने अहम की लड़ाई
कुछ पाने के लिए
पर दरअसल खोने में है  पाना
.....रजनीश (26.08.2011)

Tuesday, August 9, 2011

सूरज से एक प्रार्थना


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हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
बहुत हो गया कलुषित जीवन,
अब करो धवल  ऊर्जा संचार ।

सुबह, दुपहरी हो या साँझ,
फैला है हरदम अंधकार ।
रात्रि ही छाई रहती है,
नींद में जीता है संसार ।

तामसिक ही दिखते हैं सब,
दिशाहीन  प्रवास सभी ।
आंखे बंद किए फिरते हैं...
निशाचरी व्यापार सभी ।

रक्त औ रंग में फर्क न दिखे,
भाई को भाई   न देख सके ।
अपने  घर में ही  डाका डाले,
सहज कोई पथ पर चल न सके ।

हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
भेजो मानवता किरणों में,
पशुता से व्याकुल संसार ।
....रजनीश (15.01.11) मकर संक्रांति पर
(ब्लॉग पर ये रचना पहले भी पोस्ट  की थी मैंने  पर तब नया नया सा था  
शायद आपकी नज़र   ना  पड़ी हो इस पर  इसीलिए  इच्छा  हुई कि  दुबारा पोस्ट  करूँ   )

Thursday, August 4, 2011

मंज़िल

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आओ उस ओर चलें
जीवन की धारा में
हँसते हुए , दुखों को साथ लिए
आओ चलें ,
थामे हाथ , एक स्वर में गाते
एक ताल पर नाचते पैर
 बैठें उस नाव में और बह चलें
आओ उस ओर चलें

आओ चलें
पार करें मिलकर वो पहाड़
जो फैलाए सीना रोज शाम
सूरज को छिपा लेता है अपने शिखर के पीछे
आओ चलें
लांघें उसे क्यूंकि उसके पीछे ही है
 मीठे पानी की झील
आओ उस ओर चलें

कांटो से होकर खिलखिलाते फूलों की ओर,
आओ चलें उस मंजिल की ओर
जो जीवन में ही समाई है ,
कहीं दूर नहीं बस उन तूफानों और बादलों के बीच,
आओ उस ओर चलें
....रजनीश

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