कुछ लाइनें बस बढ़ती चली जाती हैं
कुछ बेदर्द राहें लंबी होती चली जाती हैं
जब लगता है जो चाहा वो बस अब मिला
मंज़िलें कुछ कदम दूर चली जाती हैं
ठंड में बढ़ती ठंडी , गर्मी में बढ़ती गर्मी
बरसात में बारिश होती ही चली जाती है
हर मौसम बढ़ता एक चरम की तरफ
हिमाले की ऊंचाई भी बढ़ती चली जाती है
हवा में बढ़ता धुआँ पानी में मटमैलापन
खाने में मिलावट बढ़ती चली जाती है
हर पल बढ़ता जाता खर्च दवा-दारू का
दबाने गला मंहगाई बढ़ती चली जाती है
बढ़ते दंगे बढ़ता खून खराबे का सिलसिला
हत्यारे बमों की फसल बढ़ती चली जाती है
भ्रष्टाचार बना आचार-व्यवहार की जरूरत
हिम्मत हैवानियत की बढ़ती चली जाती है
...रजनीश (23.09.2011)