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Wednesday, July 20, 2011

एक नई कहानी

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हुई ख्वाबों ख़यालों की बातें पुरानी
सुनाता हूँ तुमको आज की है कहानी

अब होते नहीं प्यार में ढाई आखर
न मजनूँ परवाना न लैला दीवानी

खो गया  बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी

हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में  छाई है वीरानी

होली रोज़ लहू की   मौत के पटाखे  चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी

न शराफत  न गैरत न इज्जत न मुहब्बत
हैवानियत का मज़ा  इंसानियत की है परेशानी

......रजनीश (19.07.2011)
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