कुछ आंसू जो कैद थे
एक रील में
सिसकियों के साथ
तरंगों में बह जाते हैं
जब चलती है वो रील
सारे लम्हे संग आंसुओं के
हवा में हो जाते हैं प्रसारित
एक तरंग में
उन्हें महसूस कर
कैद करता है एक तार
और मेरे दर तक ले आता है
काँच की इक दीवार के पीछे
एक माध्यम में प्रवाहित हो
एक किरणपुंज आंदोलित होता है
और काँच की उस दीवार पर
नृत्य करने लगती हैं
प्रकाश की रंग बिरंगी किरणें
नाचते नाचते
टकराती हैं आकर
एक पर्दे से
मेरी आँखों के भीतर
जन्म होता है
एक तरंग का
जो भागती है
मस्तिष्क की ओर
उसका संदेश
लाकर सुनाती है
मेरी आँखों को
कुछ आँसू
ढलक जाते हैं
मेरी आँखों से
और आ गिरते हैं
हथेली पर
और इस तरह
पूरा होता है
रील में बसे
आंसुओं का सफर
.....रजनीश (19.02.12)
टीवी देखते हुए