राह-ए-इश्क में क्यूँ गमों की भीड़ सताती है
हो कितनी ही काली रात सुबह जरूर आती है
बाग-ए-बहार दूर सही गमोसितम की महफ़िल से
फूलों की महक भला काँटों से कहाँ रुक पाती है
मंज़िलें खो जाने पर कहाँ ख़त्म होता है सफ़र
गुम हो रही राह से भी एक राह निकल आती है
फिक्र नहीं गम-ओ-दर्द का बसेरा मिलता है हर राह
कड़ी धूप हो या बारिश एक छांव तो मिल जाती है
राह-ए-इश्क में लुटा खुद को सारी खुशियाँ लुटा दो
गमों के साये गुम जाते हैं हर खुशी लौट आती है
........रजनीश (27.02.15)
रोशनी कर तो ली मैंने अंधेरा भी गुम हो गया
पर चिराग की जुगत में रस्ता ही गुम हो गया
अंधेरे में थी ना बात कि चरागों को बुझा सके
पर हवा का झोंका साजिश में शामिल हो गया
अंधेरा न आया कहीं से न गया ही था कहीं
जला बस इक चिराग माहौल रोशन हो गया
रही संग उसके रोशनी जब तक जला चिराग
थक कर क्या रुका वो अंधेरे में खो गया
रोशनी का समंदर अंधेरे को डुबा न सका
जाने कहाँ जलते चरागों का दम खो गया
बढ़ते कदमों को रोकने का दम अँधेरों में कहाँ
जब सफर बुलंद हौसलों से रोशन हो गया
अजब सी बात रोशनी में हम तुम ज़ुदा ज़ुदा
पर बंद आँखों से जब देखा मैं तुम हो गया
प्रेम रूप, प्रेम रंग
प्रेम रोग, प्रेम राग
प्रेम गीत, प्रेम धुन
प्रेम मंत्र , प्रेम राह
प्रेम पुष्प, प्रेम बगिया
प्रेम मंदिर, प्रेम पूजा
प्रेम धन, प्रेम गहना
प्रेम नाता, प्रेम रिश्ता
प्रेम प्यास, प्रेम आस
प्रेम खास, प्रेम पास
प्रेम बादल, प्रेम वर्षा
प्रेम सागर, प्रेम धारा
प्रेम नदिया, प्रेम कुटिया
प्रेम नगरी, प्रेम दुनिया
प्रेम धरती, प्रेम अंबर
प्रेम इंसान, प्रेम ईश्वर
....रजनीश ( 14.02.15)
इक रास्ता जो था मिला, इक रास्ते में खो गया
इक सपना जो था दिखा, इक सपने में खो गया
प्यार की बगिया लगाने, बनाई थीं कुछ क्यारियाँ
बीज नफ़रत के न जाने, कौन उनमें बो गया
कुछ रेत ही मिल सकी, बनाया था इक आशियाँ
वो किनारा भी मेरा , समंदर का पानी धो गया
उसकी ख़िदमत की बड़ी हसरत से की
तैयारियां
कहाँ रुकना था उसे बस ये आया
और वो गया
सोचा था चलो एक चाँद है संग
ऊपर आसमां
देखने बैठा था उसे , वो बादलों में खो गया
………..रजनीश (05.02.15)
मिल
जाती जो नज़रें होती मुलाक़ात की ख़्वाहिश
हो जाती
गर मुलाक़ात होती है बात की ख़्वाहिश
हो
जाता है शामिल रस्में तोड़ने वालों में मौसम
जब बारिश
में धूप और होती है ठंड में बारिश
मांग
लेते हम भी वही गर दूसरे दर्द नहीं होते
रह जाती
है फेहरिस्त में नीचे चाहत की गुजारिश
मिल
जाती कामयाबी कुछ हम भी बन जाते
रह जाती
कसर थोड़ी अपनी कौन करे सिफ़ारिश
करते
हैं कोशिश कि बढ़ते किसी सफ़र पर कदम
हो जाती
है फिर शुरू हमारे सपनों की साज़िश
...........रजनीश
(02.02.15)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....