गिरता पानी
बहती नदिया
ओढी धरती
हरी चदरिया
आया सावन
गरजे बदरिया
चमके बिजुरी
बैरी सांवरिया
भीगा आंगन
भीगी गलियां
पड़ गये झूले
नाचे गुजरिया
छुप गया सूरज
घिर आए बादल
खो गया चंदा
गुमी चंदनिया
मौसम भीगा
भीगा तनमन
हर दिल बहका
ले कौन खबरिया
गिरता पानी
बहती नदिया
ओढी धरती
हरी चदरिया
..........रजनीश (14.07.17)

बुझ गई धरा की प्यास
खुश हुईं सारी नदियां भी
लहलहा उठे हैं सब खेत
देखो तनी है छाती पेड़ों की
गुम चुकी है बदरिया अब
भिगा धरती का हर छोर
फिर दौड़ने लगा है सूरज
सींचता प्यारी धूप चहुं ओर
छोटे हो चले अब दिन
अब होंगी लंबी रातें
निकाल लो अब रजाइयाँ
दुबक कर करना उसमें बातें
हैं ये दिन त्योहारों के
बन रही है मिठाइयाँ
रोशन दिये से होंगी रातें
चल रही है तैयारियां
कोई डरता अब के बरस भी
फिर से सिहर कर काँप उठता
हैं पास न छत न उसके कपड़े
बचने की वो भी कोशिश करता
बर्फ सजाएगी पहाड़ों को अब
गहरी झीलें भी जम जाएंगी
सुबह मिलेंगीं ओस की बूंदें
साँसे भी अब दिख जाएंगी
वादियाँ ओढ़ती हैं एक लिहाफ
दुनिया कोहरे में छुप जाती है
लो ख़त्म हुई इंतज़ार की घड़ियाँ
इठलाती हुई ठंड आती है ...
.....रजनीश ( 21.10.2011)
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