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Saturday, April 21, 2012

धूल के बवंडर

धूल के बवंडर
देखता हूँ अक्सर
बनते बिगड़ते
यहाँ वहाँ भागते
अपने साथ
तिनकों और पत्तों को
ऊंचाई पर ले जाकर छोड़ते

पत्ते और तिनके
अपनी किस्मत के मुताबिक
आसमान में कटी पतंग जैसे
दूर दूर जा गिरते हैं

पता नहीं कहाँ से
उठते है ये बवंडर
धरती के सीने में
दो शांत पलों के अंतराल में
हवा कितनी तेज हो जाती है
अचानक , जैसे किसीने उसकी
दुखती रग पर हाथ रख दिया हो
आसमान छू लेने की चाहत में
तेजी से घूमते हुए उठते हैं
धूल के बवंडर

थोड़ी देर का
आवेग और आवेश
पर इनके बाद के शांत पल
अपने साथ लिए रहते हैं
विध्वंस के निशान
और रिसते ज़ख्म
दिल की दीवार का
कुछ हिस्सा जैसे
झंझावात में
टूट कर बिखर जाता हो
और आँखों में घुस आती है धूल
और दिखता नहीं कुछ भी

कई बार बवंडर
मुझसे निकलकर
धूल उड़ाते भागते हैं
कई बार मैं खुद
ऊंचाइयों से गिरा हूँ
बवंडर में उड़कर
कुछ बवंडर दूर से
मेरे पास आते गुम गए
कभी मैं ही खो गया बवंडर में
कभी आने का एहसास
पहले दे देते हैं ये
कभी इनका पता चलता है
इनसे  गुजर जाने के बाद

बवंडरों की ज़िंदगी
होती है कुछ पलों की
पर खत्म नहीं होते ये
जाने के बाद भी
अमरत्व प्राप्त है इनको

बवंडर खुद बना कर भी देखा है
और इसे मिटा कर भी
पर इन बवंडरों पर काबू
ना हो सका अब तक
उड़ती धूल के थपेड़ों का सामना करता
खड़े रहने की कोशिश करता हुआ
मैं हर बार खुद को
थोड़ा और जान लेता हूँ
पर अब तक पहेली हीं रहे
धूल के बवंडर  ....
...रजनीश (21.04.2012)

Thursday, June 2, 2011

हवा

DSCN3903
अभी कुछ पल ही बीते
धूप बिखेर रही थी अंगारे
जमीन  कर रही थी कोशिश
कहीं छूप जाने की
फिर अचानक
धूप में मिलने लगी धूल
हवा चलते चलते दौड़ने लगी
दौड़ते दौड़ते उड़ने लगी
बन गई भयंकर आँधी
और उड़ाने लगी सब कुछ
जो उसके रास्ते में आया
पहले झुके फिर टूट भी गए पेड़
उड़ गए घोंसले और उड़ गईं छतें आशियानों की
हवा भाग रही थी बदहवास
उसका आवेग उसका आवेश देख
मैं सकते में था
न ही थी उसकी कोई दिशा निर्धारित
लगा जैसे कोई अंतर्द्वंद
चल रहा था उसके अंदर
पहले कभी देखा नहीं था
हवा को इस तरह भागते बदहवास ,
इतनी शक्ति लगाते,
बिजली से  चुभा-चुभा कर 
बादलों को भी उसने नीचे लाकर पटक दिया
और जमीन को पूरा भिगो दिया
किया विध्वंस हर तरफ
मैं कहता रह गया उससे कि
खड़े रहने दो मुझे इस मैदान में
मुझे समझना है तुम्हारी इस हालात की वजह
पर उसने एक न सुनी
जब उखड़ने लगे मेरे पैर
तो उससे दूर हुआ
और घर की बालकनी से
देखने लगा  हवा का धूल ,धूप और 
पानी के साथ  तांडव
पर इस जद्दोजहद के बाद
इतना तो समझ पाया
कि हवा उद्वेलित है
रुष्ट भी है और आतंकित भी
इसीलिए रौद्र रूप धारण किया है
धूप, धूल और बादल भी उसके साथ हैं
इस मोर्चे में ,
उसने बताया  तो नहीं
पर मुझे हुआ ये महसूस कि
उसे इस बिगड़े हाल में
पहुंचाने वाले हम ही हैं  ...
...रजनीश (01.06.2011)
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