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Tuesday, March 29, 2011

हमराज़

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तुम चाहते हो सब कुछ कह दूँ तुम्हें,
एक बार फिर दिल खोल कर रख दूँ 
उन कुछ पलों को मेरे अपने हो जाओगे,
मैं  तुम्हें थोड़ा और मालूम हो जाऊंगा, 
जान जाओगे एक और राज़, 
फिर शांत हो जाएगी तुम्हारी जिज्ञासा, 
हम दोनों के बीच खुला पड़ा
सामने मेज पर मुझे
देखकर ऊब  जाओगे,
कर्तव्य पूरा करोगे, मैं समझता हूँ कहकर ,
फिर तुम्हें अपनी सलीब दिखेगी
जो तुम्हें निकालेगी मेरी कहानी से हमेशा की तरह
दूर होने लगोगे तुम वहीं बैठे-बैठे,
और फिर सब भूल जाओगे जाते-जाते ,
थोड़ी देर में मेरा भी भ्रम दूर हो जाएगा
कि मन हल्का हो गया, 
मैं थोड़ा और बिखर जाऊंगा,
खैर,  तुम सुन तो लेते हो ...  
....रजनीश (29.03.11)

Friday, February 11, 2011

दोस्त

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वो कुछ कहता नहीं,
और मैं सुन लेता हूँ,
क्योंकि उसकी बातें
मेरे पास ही रखी हैं,
उसकी आवाज़ में झाँककर
कई बार अपने चेहरे पर चढ़ी धूल
साफ की है मैंने ,
अक्सर उसकी वो आवाज़,
वहीं पर सामने होती है
जहां तनहा खड़ा ,
मैं खोजता रहता हूँ खुद को,
उस खनक में ,
रोशनी  होती है एक
जो करती है मदद,
और मेरा हाथ पकड़
मुझे ले आती है मेरे पास,
उसकी आवाज़ फिर  सहेजकर 
रख लेता हूँ....
दोस्त है वो मेरा .....
.............रजनीश (10.02.2011)

Tuesday, November 16, 2010

दोस्त

rमन ,
मेरे दोस्त ,
शायद सबसे करीबी
कितनी निकटता है तुममें और मुझमें
लंगोटिया यार हो
तुम्हें कष्ट हुआ तो झलकता है मेरे चेहरे पर
मेरी खिलखिलाहट में छुपि होती है खुशी तुम्हारी ,
तुम मेरी आँखों से रोते हो,
तुम भटके तो मैं भटक जाता हूँ ,
शायद तुमहरे बिना मैं कुछ नहीं।
दिन भर तुम्हें साथ लिए घूमता हूँ ...
रात में तुम मुझे ले चलते हो अपनी दुनिया में
दोस्त,
अक्सर समुंदर की रेत पर तुम्हारे साथ दौड़ते मैं थक जाता हूँ
पर तुम दौड़ते रहते हो मुझसे आगे , हमेशा /
इस दौड़ में मुझे बड़ा मजा आता है/
दोस्त  ,
एक दिन तुमसे आगे मैं जरूर निकलूँगा .......
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....