Showing posts with label दास्तां. Show all posts
Showing posts with label दास्तां. Show all posts

Monday, August 12, 2013

चलो ऐसा अफसाना लिखें


चलो ऐसा अफसाना लिखें
जिसके पन्नों पे हो
प्यार की दास्तां
संग चलने का वादा लिखें
चलो ऐसा अफसाना लिखें

चलो ऐसा अफसाना लिखें
जिसके शब्दों में हो
प्यार का रंग बयां
डोर से बंधा वो नाता लिखें
चलो ऐसा अफसाना लिखें

चलो ऐसा अफसाना लिखें
कभी कलम तुम बनो
कभी हाथ मैं बनूँ
कभी अल्फ़ाज़ तुम चुनो
कभी जज़्बात मैं चुनूँ
जिसे पढ़के मिल जाए
मुहब्बत का जहां
हरदम वफ़ा का रिश्ता लिखें
चलो ऐसा अफसाना लिखें

चलो ऐसा अफसाना लिखें
जिसकी स्याही हो मीठी
पन्नों में हो महक
सोख ले आसुओं को
पढ़ने की हो ललक
और गुनगुना कर मिले
मुहब्बत को जुबां
प्यार में भीगा गाना लिखें
चलो ऐसा अफसाना लिखें

चलो ऐसा अफसाना लिखें
जहां ना हुस्न ना शबाब
ना पर्दा ना नकाब
ना साक़ी ना शराब
ना सवाल ना जवाब
दिल से लिखा और दिल पर लिखा
प्यार भरा नज़राना लिखें

 चलो ऐसा अफसाना लिखें
....रजनीश (12.08.13)

Wednesday, May 18, 2011

थोड़ा सा रूमानी हुआ जाए

DSCN3622
दिन का हर सिरा
वही पुराना लगता है
वही चेहरे वही खबरें
वही रास्ता वही गाड़ी
वही हवा वही धूप
वही रोड़े वही कोड़े
फ्रेम दर फ्रेम
दिन की दास्तां
वही पुरानी लगती है ...

एक सी काली रातों में
कुछ उतनी ही करवटें
नींद तोड़-तोड़ कर आंखे
देखती मकड़जालों से लटके
वही फटे-पुराने ख़्वाब
कभी पर्दे से झाँकता
दिन का वही भूत
रात की भी हर बात
वही पुरानी लगती है ...

एक ही गाना
चलता बार-बार
हर बार झंकृत होता
वही एक तार
फिर भी  उड़ती नहीं
कल की फिक्र धुएँ में
एक सी जलन  हर पल सीने में
नादान दिल का  डर भी
वही पुराना लगता है  ...

चलो छोड़ो कुछ पल इसे
रखो बगल में अपनी गठरी
थोड़ा सुस्ताएँ !
आओ बैठें , एक दूजे को
जरा निहारें ,
कुछ बतियाएँ !
कैसे हो गए !
चलो एक-एक प्याला चाय हो जाए
कुछ ऊब से गए हैं
थोड़ा सा रूमानी हुआ जाए ....
... रजनीश (17.05.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....