Showing posts with label पन्ना. Show all posts
Showing posts with label पन्ना. Show all posts

Monday, February 13, 2012

एक नज़्म की कहानी

एक नज़्म लिखी थी 
उस पन्ने पर 
जो दिल में 
कोरा पड़ा था 
पर कुछ शब्द 
नहीं थे पास मेरे 
कुछ लाइनें अहसासों में 
अटक गईं थीं 
लिखते लिखते ही 
पन्ना गुम 
गया था रद्दी में 
कलम भी खो गई थी 
हिसाब-किताब में 

पलाश फिर दिखा 
खिड़की से 
रद्दी से फिर 
हाथ आ गया
वही पन्ना 
उस नज़्म के दिन 
लौट आए हैं ... 
रजनीश (13.02.2012)

Wednesday, April 20, 2011

एक अलिखित कविता

DSCN1805
सोचता हूँ
तुम्हें लिख दूँ
एक कविता में,
पर पहली-पहली कुछ लाइनें
मुझसे कोरी ही रह जाएंगी,
और कुछ आखिरी
लाइनें  मैं जानता नहीं
पर इतना जानता हूँ
वो नहीं समाएंगी इस पन्ने में,
और बीच में बस
  पहली और आखिरी
लाइनों की दूरी बयां होगी,
अगर लिखूँ तो
बहुत सी लाइनें तो कटी हुई मिलेंगी तुम्हें
और जो शब्द बच गए
पता नहीं 
कब तक रुकेंगे
लाइनों पर,
बहुत से शब्द तो मेरे पास नहीं
तुमने ही रखे  हैं,
और पन्ना भी
बस एक ही है मेरे पास...
...रजनीश (19.04.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....