जिंदगी अकेली नहीं
जिंदगी की साथी है जरूरत
चोली दामन का साथ
कुछ ऐसा है जैसे
जिंदगी का दूसरा नाम है जरूरत जिंदगी के लिए जिंदा रहना जरूरी है
जिंदा रहने के लिए बहुत कुछ जरूरी है
जरूरतों के बिना जिंदगी नहीं
जिंदगी है तो जरूरी है जरूरत
जिंदगी एक पहेली है ठीक वैसी
जैसा है जरूरतों का हिसाब किताब
जरूरतों का गणित
कितना अजीब है
जरूरतों का जाल
जिंदगी का नसीब है
जरूरतों का जोड़ - घटाव
जरूरतों का गुणा - भाग
किताबों में वर्णित नहीं
जरूरतों का सीधा - सीधा गणित नहीं
एक जरूरत ,
जरूरत ही नहीं रह जाती
जब कोई और
जरूरत आ जाती है
जिसकी कभी जरूरत ही नहीं थी
वो कभी पहली जरूरत
बन जाती है
एक जरूरत में
दूसरी जरूरत मिल जाने से
जरूरत ही खत्म हो जाती है
कभी कई जरूरतों को
आपस में जोड़ने से
एक जरूरत बन जाती है
जरूरतें पूरी भी होती हैं
पर जरूरतें खत्म नहीं होतीं
जरूरतें थोड़ी भी लगें तो
जरूरतें कम नहीं होतीं
जरूरतों की कीमत होती हैं
कुछ जरूरतें बेशकीमती होती हैं
जरूरतों को जानना होता है
कुछ जरूरतों को भुलाना होता है
जरूरतों को मानना होता है
कुछ जरूरतों को मनाना होता है
गणित में
एक तरफ शून्य होता है
दूसरी तरफ अनंत
एक तरफ कुछ नहीं
दूसरी तरफ सब कुछ पूर्ण
पर जरूरत का सिद्धांत
तो अपूर्णता का सिद्धांत है
क्यूंकि जरूरतें अनंत है
पर जरूरतें अपूर्ण हैं
अनंत भी हैं और अपूर्ण भी हैं
जब तक जिंदगी है
जरूरतें अपूर्ण ही रहती हैं
जरूरतें ख़तम
तो जिंदगी ख़तम
जिंदगी और जरूरत
दोनों को एक दूसरे की जरूरत है
एक समीकरण है
दोनों के बीच
जिसका हल मिलता नहीं
गणित की किताबों में
.....रजनीश ( २८.१०.२०२०, बुधवार)