हवा में हरदम ऊंचा उड़ता है
कभी जमीं पर चलकर देख,
फूलों का हार पहन इतराता है
कभी कांटे सर रखकर देख,
दौलत और दावतें उड़ाता है
कभी जूठन चखकर देख,
बस पाने की जुगत ही करता है
कभी कुछ अपना खोकर देख,
अपनी जीत के लिए खेलता है
कभी औरों के लिए हारकर देख,
जो नहीं उसके लिए ही रोता है
कभी जो संग उसके हँसकर देख,
बस किताबें पढ़ता रहता है
कभी चेहरों को पढ़कर देख,
औरों के रास्ते ही चलता है
कभी अपनी राह चलकर देख,
दूसरों के घर झाँकता रहता है
कभी अपने घर घुस कर देख...
......रजनीश (24.04.2013)