(अपने ही जन्म दिवस पर ...)
बीतते जाते साल दर साल
एक दरख़्त बढ़ता जाता है
और नए नए रास्ते
मेरी झोली में गिरते जाते हैं
हर साल थोड़ा और जान लेता हूँ
ज़िंदगी को और हर साल पड़ाव पर
कुछ नए सवाल नज़र आते हैं
नहीं बढ़ती उम्र पूरी
उम्र का एक सिरा
ठहरा रहता एक मुकाम पर
बदलते हैं कैलेंडर के पन्ने
पर वो अब भी वहीं टंगा
उसी दीवार पर
हर साल कुछ पंखुड़ियाँ
और खुल जाती हैं
कुछ पत्ते हर साल झड़ते जाते हैं
एक तस्वीर की सूरत हर साल बदल जाती है
और वक्त की परतें फ्रेम पर चढ़ती रहती हैं
अभी भी चलते हैं सपने
नहीं थके अब तक
एक बच्चा
आज भी कोशिश करता है
महसूस करने , छू लेने की
पहचान लेने की
जान लेने की
जैसे आज ही लिया हो जन्म
हो जैसे ये एक नई शुरुआत ...
....रजनीश (27.09.2011)