कुछ गाँठे ऐसी मिलीं हैं डोर में
जो दिखती तो हैं पर हैं ही नहीं
कुछ बंधन ऐसे बने हैं रस्ते में
जो बांधे रहते तो हैं पर हैं ही नहीं
कुछ दीवारें ऐसी उठीं हैं कमरे में
जो खड़ी मिलती तो हैं पर हैं ही नहीं
कुछ फूल ऐसे खिले हैं आँगन में
जो खूब महकते तो हैं पर हैं ही नहीं
जिये जाते हैं कुछ पलों को बार-बार
जो सांस लेते तो हैं पर हैं ही नहीं
...रजनीश (14.09.2011)