महीने दर महीने
बदलते कैलेंडर के पन्ने
पर दिल के कैलेंडर में
तारीख़ नहीं बदलती
भागती रहती है घड़ी
रोज देता हूँ चाबी
पर एक ठहरे पल की
किस्मत नहीं बदलती
बदल गए घर
बदल गया शहर
बदल गए रास्ते
बदला सफर
बदली है शख़्सियत
ख़याल रखता हूँ वक़्त का
बदला सब , पर वक़्त की
तबीयत नहीं बदलती
कुछ बदलता नहीं
बदलते वक्त के साथ
सूरज फिर आता है
काली रात के बाद
उसके दर पर गए
लाख सजदे किए
बदला है चोला पर
फ़ितरत नहीं बदलती
क़यामत से क़यामत तक
यूं ही चलती है दुनिया
चेहरे बदलते हैं पर
नियति नहीं बदलती ...
रजनीश (27.12.2011)
एक और साल ख़त्म होने को है पर क्या बदला ,
सब कुछ तो वही है , बस एक और परत चढ़ गई वक़्त की ....