वो मैं नहीं था
जिसने बर्फीली वादियों में
सुनहली किरणों से चमकती
ज़ुल्फों के साये में
गाया था वो गाना
पर जब भी कानों को
मिलती है उस गाने की आहट
तो पाता हूँ दिल की गहराइयों में ,
मैं गा रहा होता हूँ
कहीं दूर वादियों में,
वो भीनी सी खुशबू
अब भी है जेहन में
पर उस पल तो नहीं थी
तुम्हारे आस पास
जब तुम्हें देखा था जाते हुए
पता नहीं कब जुड़ गई
तुम्हारी यादों से
जब भी सैर करती
आती है वो खुशबू कहीं से
तुम्हें साथ लिए रहती है
एक आवाज़ जब भी आती है
अतीत में ले जाती है
कभी कोई लम्हा , कभी तो कोई दिन ही
कहीं पहले गुजारा हुआ लगता है
कभी बचपन की किसी तस्वीर
से बाहर आया हुआ ....
एक स्वाद,
कोई पुरानी कहानी
सुना जाता है
एक स्पर्श और एक पुराना ख़्वाब ...
कभी आईने में देखने पर
आ जाती है अपनी ही याद
खालीपन भी जोड़ लेता है कुछ यादों को
जब एक अहसास के लिए
जगह बनती है कभी दिल में
तो उससे जुड़ा
टुकड़ा , दिल का चैन
याद आ जाता है
लोगों की भारी भीड़ में भी ...
यादें सीधी नहीं जुड़ती हमसे
उन्हें जरूरत होती है
एक सहारे या एक बैसाखी की ,
छोटी सी खाली जगह
जो मिल जाए तो फिर से
एक पुराना लम्हा
जी उठता है ...
अब मुझे याद रखना
शायद , तुम्हारे लिए
कुछ आसान हो जाए ...
...रजनीश ( 18.05.11)