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Tuesday, May 1, 2018

आंखों देखी

उनकी बातों मेँ अपना सँसार देखा है
उन्हें जब भी देखा यार देखा प्यार देखा है

सुना है बचपन भगवान का चेहरा होता है
उसी चेहरे पे दरिंदों का अत्याचार देखा है

जो देखकर भी अनदेखा किया करती थीं
आज उन  बेफिक्र आखों में इन्तज़ार देखा है

ईमान की तलाश हमें ले गई जहाँ जहाँ
वहाँ इन्सानियत की खाल में भ्रष्टाचार देखा है

खुद को बचा रखने  बेच देते हैं खुद को
जहाँ अरमानों के सौदे ऐसा बाजार देखा है

इंसानियत के मरने की खबर बड़ी पुरानी है
पर मिल जाती है जिंदा ये चमत्कार देखा है

बीते वक्त को   पुकार देखा ललकार देखा
कभी लौटते कारवां को कभी सिर्फ गुबार देखा है

......रजनीश  (12.05.18)

Friday, May 4, 2012

भ्रष्टाचार महिमा



बार बार करें यातरा, रह रह रणभेरी बजाय  
पर भ्रष्टाचारी दानव को, कोई हिला ना पाय  

कहीं गड़ी है आँख, तीर कहीं और  चलाय 
पर भ्रष्टाचारी दानव की, सब समझ में आय 

बेदम या दमदार बिल, में क्यूँ रहते उलझाय  
गइया कोई भी किताब, पल में चट कर जाय  

हम कर लें तो भ्रष्ट हैं, वो करे संत कहलाय  
अब क्या है भ्रष्टाचार, ये प्रश्न न हल हो पाय  

भरते जाते सब जेल, तिलभर जगह बची न हाय 
भ्रष्टाचार बाहर खड़ा, देखो मंद मंद मुसकाय

.....रजनीश (04.05.12)

Tuesday, November 29, 2011

फिर वही बात

2011-10-06 16.41.14
रोज़ इनसे होते हैं दो-चार
सुनते किस्से इनके हजार
खबरों से हैं गरम बाज़ार
बड़ा फेमस है भ्रष्टाचार

किसी को मिली बेल
कोई गया जेल
किसी के नाम एफ़आईआर
कोई हुआ फ़रार

कोई थोड़ा कम
कोई थोड़ा ज्यादा
आपस  में कोई भेद नहीं
किसी की शर्ट सफ़ेद नहीं

जो हवा में घुला हो
उसे मारोगे कैसे
जो खून में मिला हो
उसे पछाड़ोगे कैसे

डंडे चलाने से ये नहीं भागेगा
तुम इसे रोकोगे ये तुम्हें काटेगा
एक छत से भगाओगे दूसरी पर कूदेगा
छूट जायेगा यार इसका साथ ना छूटेगा

अभावों के घर में पलता रहा ये
जरूरतों के साथ ही बढ़ता रहा ये
दम  घोंटना हो इसका
तो गला लालच का दबाओ
पास हो जितनी चादर
उतना पैर फैलाओ
छोड़ खोज आसां रस्तों की
राह मिली जो उसमें कदम बढ़ाओ ...
....रजनीश ( 29 .11. 2011)

Wednesday, October 26, 2011

शुभ दीपावली

रोशनी और खुशियों के त्यौहा 
दीपावली की हार्दिक
शुभकामनाएं 

ख़त्म हो जीवन से अँधियारा 
हो जाये जग में उजियारा 
मिटे कष्ट दूर हों विपत्तियाँ 
बढ़ें धन-धान्य और संपत्तियाँ 

न रहे कोई  भूखा या अकेला 
हर गली लगे खुशियों का मेला 
मिले सभी को रोज़ मिठाई 
ख़त्म हो जाये सारी बुराई 

हो जाये जीवन स्वच्छ हमारा 
उजला हो घर और शहर हमारा 
हर द्वार रंगोली और दिये हों 
हर हाथ खुशियों की सौगात लिये हों 

वैमनस्य दुराचार भगा दो 
लूट और भ्रष्टाचार मिटा दो 
करो कुछ ऐसी आतिशबाज़ी भी 
अत्याचार व्यभिचार मिटा दो 

इस दीवाली सभी से मिलें 
हर दिल में प्रेम के फूल हो खिलें  
आओ मनाएँ ऐसी दीवाली 
फिर कोई रात रहे ना काली 
.....रजनीश ( दीपावली ...26.10.2011)

इस ब्लॉग पर मेरी सबसे पहली  पोस्ट  भी दीपावली पर ही थी
 (  यानि  पिछली दीवाली  पर  लिखी हुई ) बस  कुछ  लाइनें थीं   
... शुभकामनाओं की , यहाँ नीचे फिर लिख रहा हूँ : 

" दीपोत्सव  आप सबके जीवन से अंधकार दूर करे  
और  सुख , आनंद और समृद्धि  का प्रकाश   बिखेरे । 
दीवाली  आप सब के लिये मंगलमय हो ।
Wish  you a very happy and prosperous Diwali ..."
    

Friday, September 23, 2011

फैलता जहर

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कुछ लाइनें बस बढ़ती चली जाती हैं
कुछ बेदर्द राहें लंबी होती चली जाती हैं
जब लगता है जो चाहा वो बस अब मिला 
मंज़िलें कुछ कदम दूर चली जाती हैं

ठंड में बढ़ती ठंडी , गर्मी में बढ़ती गर्मी
बरसात में बारिश होती ही चली जाती है
हर मौसम बढ़ता एक  चरम की तरफ
हिमाले की ऊंचाई भी बढ़ती चली जाती है

हवा में बढ़ता धुआँ पानी में मटमैलापन
खाने में मिलावट बढ़ती चली जाती है
हर पल बढ़ता जाता खर्च दवा-दारू का
दबाने गला मंहगाई बढ़ती चली जाती है

बढ़ते दंगे बढ़ता खून खराबे का सिलसिला
हत्यारे बमों की फसल बढ़ती चली जाती है
भ्रष्टाचार बना आचार-व्यवहार की जरूरत
हिम्मत हैवानियत की बढ़ती चली जाती है
...रजनीश (23.09.2011)

Friday, April 29, 2011

कुछ बातें

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[1]
क्यूँ ढूंढते हो
गॉड पार्टिकल
कृत्रिम वातावरण में,
जबकि गॉड तो
हर पार्टिकल में है ।
[2]
तुम खोज लेते हो
कोई एक नेता
क्यूंकि तुम नहीं चाहते
खुद कुछ  करना
और वक्त भी कहाँ तुम्हारे पास  !
[3]
तुम कहते रहते हो
खत्म हो जाएगी दुनिया
क्यूंकि तुम्हें  चाहिए
कोई बड़ा सा डर
जो तुम्हारे छोटे-छोटे
डर निगल जाये ।
[4]
तुम भ्रष्टाचार
के जिस पेड़ की
टहनियाँ जंतर-मंतर पर
काट रहे थे
उसकी जड़ें तुम्हारे
आँगन तक आई हैं ।
[5]
महापुरुष का
उत्तराधिकारी नहीं होता
क्यूंकि
महापुरुष नाम का
कोई पद नहीं होता ।
...रजनीश (29.04.11)

Tuesday, April 12, 2011

भ्रष्टाचार

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कब किया था भ्रष्टाचार
मैंने पहली बार ?
तब , जब
दूसरा चॉकलेट पाने के लिए
बेमन से गाया था गाना बचपन में,
या तब, जब
झूठ ही 'तबीयत खराब थी' कहकर बचा था
होमवर्क न करने की सज़ा से,
या तब, जब
नज़रें चुराकर
भाई के हिस्से की मिठाई निकाली थी,
या तब , जब
साझे मेँ तोड़ी कुछ इमलियाँ
बिना बंटवारा किए अपनी जेब मेँ डाला था हौले से,
या फिर तब , जब
मिठाई लेने के लिए मैं
चुपचाप लाइन तोड़ आगे घुस गया था,
या फिर तब, जब
दोस्त को बचाया था मीठी गोलियों की एक चोरी मेँ
क्यूंकि वो देता था एक हिस्सा ईमानदारी से ,
या  तब, जब
स्कूल मेँ लैब असिस्टेंट से
खूब मिन्नते की थीं चिल्हर  दिखाकर 
ताकि बताए वो मिश्रण का कंपोजीशन, 
या  तब, जब
बड़ी सफाई से बगल वाले के पत्ते देखकर
जीता था ताश के खेल मेँ ,
या फिर तब , जब
एक प्रश्न का उत्तर
नकल कर लिखा था परीक्षा मेँ,
और भी बहुत कुछ है क्या क्या लिखूँ ?
पता नहीं,    
पर लगता है तभी किया होगा कहीं,
बचपन मेँ ही
भ्रष्टाचार पहली बार ...
...रजनीश (11.04.2011)

Sunday, April 10, 2011

मिलावट

271209 022
मत खाना कुट्टू का आटा
इसमें भ्रष्टाचार मिला है,
दूध में नहीं दूध,
हैवानियत का क्षार मिला है..

पानी में है पानी
पर इसकी अलग कहानी,
कैसे पी लें इसमें भी तो
बीमारी का बुखार मिला है..

हरी सब्जी में हरा कुछ नहीं,
स्वाद फलों का कृत्रिम है,
सब कुछ नकली झूठा लगता
ये कैसा संसार मिला है ?
...,रजनीश (10.04.11)
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