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Sunday, December 25, 2011

सीटी

बचपन में हमने जब सीटी बजाई 
डांट भी पड़ी थोड़ी मार भी खाई 

होठों को गोलकर 
मुंह से हवा छोड़ना 
किसी गाने की लय 
से लय जोड़ना 

क्या गुनाह है 
अपनी कलकारी दिखाना 
इन्सानों को सीटी की 
प्यारी धुन सुनाना 

फिर कहा किसी ने 
 कला का रास्ता मोड़ दो 
शाम ढले खिड़की तले 
तुम सीटी बजाना छोड़ दो 

अब हम क्या कहें आप-बीती 
कभी ढंग से न बजा पाये सीटी 
कभी वक्त ने तो कभी औरों  ने मारा
अक्सर हो मायूस दिल रोया हमारा 

पर मालूम था अपने भी दिन फिरेंगे 
कभी न कभी अपने दिन सवरेंगे 

समाज सेवकों को हमारी बधाई 
हमारी आवाज़ संसद तक पंहुचाई 
आज कल खुश है अपना दिल 
आने वाला है व्हिसल-ब्लोअर्स बिल !
जब कानून होगा साथ 
फिर क्यों चुप रहना 
अब खूब बजाएँगे सीटी 
किसी से क्या डरना !
.....रजनीश (25.12.2011)

MERRY CHRISTMAS 
  
 
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