बचपन में हमने जब सीटी बजाई
डांट भी पड़ी थोड़ी मार भी खाई
होठों को गोलकर
मुंह से हवा छोड़ना
किसी गाने की लय
से लय जोड़ना
क्या गुनाह है
अपनी कलकारी दिखाना
इन्सानों को सीटी की
प्यारी धुन सुनाना
फिर कहा किसी ने
कला का रास्ता मोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
अब हम क्या कहें आप-बीती
कभी ढंग से न बजा पाये सीटी
कभी वक्त ने तो कभी औरों ने मारा
अक्सर हो मायूस दिल रोया हमारा
पर मालूम था अपने भी दिन फिरेंगे
कभी न कभी अपने दिन सवरेंगे
समाज सेवकों को हमारी बधाई
हमारी आवाज़ संसद तक पंहुचाई
आज कल खुश है अपना दिल
आने वाला है व्हिसल-ब्लोअर्स बिल !
जब कानून होगा साथ
फिर क्यों चुप रहना
अब खूब बजाएँगे सीटी
किसी से क्या डरना !
.....रजनीश (25.12.2011)
MERRY CHRISTMAS