किया था मना मैंने
पर ये जिद थी तुम्हारी ,
लाइन दर लाइन तुम्हें
लो उतार दिया पन्ने पर,
छुपाएँ कुछ तुम्हें
न ऐसी नीयत हमारी...
अब कहते हो
न रदीफ़ है न काफ़िया,
न जाने ये क्या लिख दिया..
टेढ़ी-मेढ़ी अधूरी लाइनें
जैसे कचरे का ढेर
कोई रख दिया...
मैंने कहा -
लिखा है ,तुम्हें ही
सादगी, संजीदगी से, ..
और मांग ली माफ़ी
मैंने अपनी ज़िंदगी से ...
...रजनीश (10.05.2011)