बारिश की बूंदें
गरम तवे सी जमीं पर
छन्न से गिर गिर
भाप हो जाती हैं
हवा की तपिश
हवा हो जाती है
पहली बारिश में
जैसे कोई अपना
बरसों इंतज़ार करा
छम्म से सामने
आ गया हो अचानक
बह जाती है सारी जलन
बूंदों से बने दरिया में
पर तपिश की जगह
बैठ जाती है आकर
एक बैचेनी एक तकलीफ
जैसे एक रिश्ता दे रहा हो
आँखों को ठंडक
छोड़ दिल में एक भारीपन
रिश्तों की उमस का एहसास
बारिश के दिनों
बार बार होता रहता है
जिन्हें बुलाया था
मिन्नते कर
उन्हीं बादलों के
छंटने का इंतज़ार
कराती है एक उमस
बरसात के दिनों
और रिश्तों की उलझनों में
जो देता है ठंडक
वही उमस क्यूँ देता है...
.....(रजनीश 17.06.12)