Showing posts with label कहानी. Show all posts
Showing posts with label कहानी. Show all posts

Sunday, March 22, 2015

हर दिन एक कहानी


हर दिन एक कहानी 
लम्हा-दर-लम्हा 
लिखती ज़िंदगानी 
हर दिन एक कहानी

थोड़ी सी आरजू थोड़े से अरमां
थोड़ी सी प्यास थोड़ा सा पानी
थोड़ी सी कसमें थोड़े से वादे
थोड़ी सी नई थोड़ी पुरानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ी सी जीत थोड़ी सी हार 
थोड़ा सा प्यार थोड़ी तकरार
थोड़ा सा गम थोड़ी खुशी
थोड़ी गुलामी थोड़ी मनमानी
हर दिन एक कहानी

थोडा सा दर्द थोड़ा सा जोश
थोड़ी मदहोशी थोड़ा सा होश
थोड़ी बातूनी थोड़ी खामोश  
थोड़ी अनजानी थोड़ी पहचानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ी मोहब्बत थोड़ी इबादत
थोड़ी हिमाकत थोड़ी शरारत
थोड़ी बगावत थोड़ी अदावत
थोड़ी तेरी थोड़ी मेरी जुबानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ा न थोड़ा जादा न जादा 
कभी आधा पूरा कभी पूरा आधा
थोड़ी सी पूरी थोड़ी अधूरी
थोड़ी संजीदा थोड़ी बेमानी
हर दिन एक कहानी

...........रजनीश ( 22.03.15)

Sunday, January 22, 2012

बचपन की बात


बचपन के दिन थे 
कुछ ऐसे पल छिन थे 
ऊपर खुला आसमां था 
पूरा शहर अपना मकां था 

हर बगिया के बेर 
होते अपने थे 
खेलते कंचे और  
बुनते सपने थे 

ना दुनियादारी की झंझट 
ना कोई नौकरी का रोना 
बस काम था पढ़ना 
खेलना-कूदना और सोना  

पर तब क्या सब मिल जाता था 
क्या जैसा चाहा  हो जाता था 
क्या दिल तब नहीं दुखता था 
क्या कांटा तब कोई नहीं चुभता था 

दिल चाहता था उड़ना बाज की तरह 
खो जाना वादियों में गूँजती आवाज़ की तरह 
हर खिलौना  मेरी झोली में नहीं था 
मेरा बिछौना भी मखमली नहीं था 

बचपन में ही जाना पराया और अपना 
कि सच नहीं होता है हर एक सपना 
सीखी बचपन में ही चतुराई और लड़ाई 
अच्छे और बुरे की  समझ भी बचपन में आई 

अफसोस तब भी 
दर्द तब भी होता था 
कुंठा तब भी 
प्यार तब भी होता था 

कुछ बातें ऐसी थी 
लगता बचपन कब बीतेगा 
जैसे नियंत्रण में रहना 
और पढ़ना कब छूटेगा 

बस उम्र ही कम थी 
और सब कुछ वही था 
थोड़ी सोच कम थी 
इसलिए सब लगता सही था 

उत्सुकता ज्यादा 
और शंका कम थी 
सौहार्द्र ज्यादा और
 वैमनस्यता कम थी 

पर थे सब एहसास 
हर भावना मौजूद थी 
लगते थे संतोषी 
पर हर कामना मौजूद थी 

बचपन है आखिर जीवन का हिस्सा 
दिन वही और रात वही है 
बस कुछ रंग हैं अलग 
तस्वीर वही और बात वही है 

कोई बचपन महलों में रहता 
कोई फुटपाथ पे सो जाता है 
किसी को सब मिल जाता है 
कोई बचपन खो जाता है 

हर बचपन एक जैसा नहीं होता 
जैसे नहीं हर एक जवानी 
अलग अलग चेहरे हैं सबके 
सबकी अलग कहानी 
...रजनीश (22.01.2011)

Wednesday, July 6, 2011

वक़्त से बात

DSCN3908
बस एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
पर उसके कंधे से मेरा कंधा
कहाँ मिला ?
हम दोनों ही चलते हैं
उसका हाथ
मेरे हाथों में जरूर है
पर मेरा बाकी जिस्म
है बहुत पीछे ,
महसूस होता है ये फासला
हाथ में जीते हुए दर्द से
खींचता है वक़्त , देता है आवाजें
कहता हूँ , वक़्त तुम ही कुछ तेज  हो
वक़्त कहता है
हाथ छूटा तो फिर न कहना
अगर मैं पहुँच गया
तुमसे पहले उस ठिकाने पर
तो फिर तुम्हें खींच न पाऊँगा
तुम्हारी अधूरी कहानी
संग ख़त्म हो जाऊंगा
मैंने कहा मैं क्या करूँ
तुम ही मुझे इस कंटीले
ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर ले आए
तुम खुद आगे निकल गए
ऐ  वक़्त तुम रुकते नहीं हो
किसी के लिए
मेरी भी कोई दुश्मनी नहीं तुमसे
फिर ये खींचातानी किस लिए
तकलीफ़ तो तुम्हें भी होती होगी
इन पथरीले फिसलन भरे रस्तों में
मत रुको मैं नहीं लड़ूँगा
पर अब रास्ता मैं बनाऊँगा
और जहां तक चल सकूँ
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
...रजनीश ( 05.07.2011 )

Sunday, May 29, 2011

एक इबारत

DSCN3700
झील की ओर
जा रहे हो ?
वहाँ  खड़ी दीवार पर
लिखी जो  इबारत है
मेरे सपनों का लेखा-जोखा ,
मेरी कहानी है..
पर उसमें मेरे सपने
नहीं  दिखेंगे तुम्हें ...
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...रजनीश (29.05.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....