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Tuesday, April 15, 2014

चुनाव का त्यौहार


पाँच साल में एक बार आता ये त्यौहार 
चुने हुए चंद लोगो की बनती नई सरकार  

हर नेता बरगलाए जनता पर डाले डोरे
होता आया हर बार वादे निकलते कोरे

किसको दे दें वोट किसका समर्थन छोड़े
जनता  हुई परेशान दीवारों से सर फोड़े

मजबूती-कमजोरी में पिस गई जनता सारी
महंगाई मुंह फाड़े जनता भ्रष्टाचार की मारी

जनता है कनफ्यूज़ रस्ता कोई ढूंढ न पाये
नेता चीखें “बरबादी” हल कोई बता न पाये

सत्ता का है खेल, मकसद है कुर्सी पाना
नहीं बदलना और वोटर को उल्लू बनाना

मत देकर भेजो सही, गलत को मत ना देना
मत देना ज़िम्मेदारी,  मौका मत जाने देना 
.........रजनीश (15.04.14)

Wednesday, October 26, 2011

शुभ दीपावली

रोशनी और खुशियों के त्यौहा 
दीपावली की हार्दिक
शुभकामनाएं 

ख़त्म हो जीवन से अँधियारा 
हो जाये जग में उजियारा 
मिटे कष्ट दूर हों विपत्तियाँ 
बढ़ें धन-धान्य और संपत्तियाँ 

न रहे कोई  भूखा या अकेला 
हर गली लगे खुशियों का मेला 
मिले सभी को रोज़ मिठाई 
ख़त्म हो जाये सारी बुराई 

हो जाये जीवन स्वच्छ हमारा 
उजला हो घर और शहर हमारा 
हर द्वार रंगोली और दिये हों 
हर हाथ खुशियों की सौगात लिये हों 

वैमनस्य दुराचार भगा दो 
लूट और भ्रष्टाचार मिटा दो 
करो कुछ ऐसी आतिशबाज़ी भी 
अत्याचार व्यभिचार मिटा दो 

इस दीवाली सभी से मिलें 
हर दिल में प्रेम के फूल हो खिलें  
आओ मनाएँ ऐसी दीवाली 
फिर कोई रात रहे ना काली 
.....रजनीश ( दीपावली ...26.10.2011)

इस ब्लॉग पर मेरी सबसे पहली  पोस्ट  भी दीपावली पर ही थी
 (  यानि  पिछली दीवाली  पर  लिखी हुई ) बस  कुछ  लाइनें थीं   
... शुभकामनाओं की , यहाँ नीचे फिर लिख रहा हूँ : 

" दीपोत्सव  आप सबके जीवन से अंधकार दूर करे  
और  सुख , आनंद और समृद्धि  का प्रकाश   बिखेरे । 
दीवाली  आप सब के लिये मंगलमय हो ।
Wish  you a very happy and prosperous Diwali ..."
    

Monday, March 21, 2011

होली के बाद

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क्या बताऊँ तुम्हें,
क्या खूब होली थी ,
क्या रंग चढ़ाया था यारों ने ,
सबको गले लगाया,
उसे भी सराबोर किया रंगों में,
याद नहीं गुलाल लगे
कितने गुझिए खा गया मैं,
नंगे पैर भंग की तरंग में
नाचता रहा  नगाड़े के फटने तक,
और फिर नशे को फाड़ा घंटों बैठ,
नींबू और पता नहीं क्या-क्या ...
जुगत तो बहुत लगाई थी
कि रंग कोई ना चढ़े,  पर
ज़ालिमों ने न जाने कौन सा रंग लगाया था,
चार घंटे घिस-घिस के जब छिल गई चमड़ी
तब कहीं उतरे ये रंग,
बड़ी मेहनत के बाद उतरी होली ,
देखो एक कण भी नहीं बचा
अब किसी रंग का ...
तुम नहीं कह पाओगे अब मुझे देख
कि वो जो झूम रहा था,
रंगों में डूबा जो प्रेम बाँट रहा था,
रंगों में घुल सब के संग-
एक हो गया था
वो मैं था ,
नहीं ,अब मुझे देख यह तुम कह नहीं पाओगे ...
कि मैंने होली खेली थी ...
  ...रजनीश (21.03.11)

Saturday, March 19, 2011

होली के रंग

DSCN3872
दिल से लगाओ रंग कभी खत्म नहीं होंगे....

आओ, ये  रंगो का मौसम है ,
खेलें इनसे और घुल-मिल जाएँ
इन रंगों में ,
केवल टीके और पिचकारी से नहीं
रंगों की बौछारों से खेलें ,
दोनों हथेलियों में भर-भर कर
अबीर-गुलाल उड़ाएँ ,
खुल जाएँ और पूरें भीगें,
महसूस करें इन रंगों को ... 
ये पल हैं सराबोर होने के,
पूरा-पूरा रंगने के पल हैं  ...
अच्छी तरह रंगने के लिए
करीब आना होता है ,
दीवारें तोड़नी होती हैं,
पूरी तरह रंगों में डूब जाने पर ही
लगते हैं सभी इक रंग में रंगे,
और तब असली रंग उतरता है दिल में...
प्रतीकों में नहीं ,
दिल खोल कर खेलें सभी,
सबसे मिलें ,सबमें मिल जाएँ ...एकरंग 
और ये त्यौहार बस चलता रहे...
...रजनीश (19.03.2011)
 (होली की शुभकामनाएँ ! )
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....