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Sunday, November 29, 2015

धुंध

अब सूरज को
रोज ग्रहण लगता है
सूरज लगता है निस्तेज
सूरज की किरणों पर तनी
इक  चादर मैली सी
जिसे ओढ़ रात को  चाँदनी भी
फीकी होती दिन-ब-दिन
धुंध की चादर फैली
सड़कों गलियों से
जंगलों और पहाड़ों तक
कराती है एहसास
कि हम विकसित हो रहे हैं ...
....रजनीश (29.11.15)



Sunday, March 22, 2015

हर दिन एक कहानी


हर दिन एक कहानी 
लम्हा-दर-लम्हा 
लिखती ज़िंदगानी 
हर दिन एक कहानी

थोड़ी सी आरजू थोड़े से अरमां
थोड़ी सी प्यास थोड़ा सा पानी
थोड़ी सी कसमें थोड़े से वादे
थोड़ी सी नई थोड़ी पुरानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ी सी जीत थोड़ी सी हार 
थोड़ा सा प्यार थोड़ी तकरार
थोड़ा सा गम थोड़ी खुशी
थोड़ी गुलामी थोड़ी मनमानी
हर दिन एक कहानी

थोडा सा दर्द थोड़ा सा जोश
थोड़ी मदहोशी थोड़ा सा होश
थोड़ी बातूनी थोड़ी खामोश  
थोड़ी अनजानी थोड़ी पहचानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ी मोहब्बत थोड़ी इबादत
थोड़ी हिमाकत थोड़ी शरारत
थोड़ी बगावत थोड़ी अदावत
थोड़ी तेरी थोड़ी मेरी जुबानी
हर दिन एक कहानी

थोड़ा न थोड़ा जादा न जादा 
कभी आधा पूरा कभी पूरा आधा
थोड़ी सी पूरी थोड़ी अधूरी
थोड़ी संजीदा थोड़ी बेमानी
हर दिन एक कहानी

...........रजनीश ( 22.03.15)

Sunday, March 8, 2015

बस एक दिन


बस एक दिन
कर दिया उसके नाम
जिसका एहसानमंद है
मेरा हर दिन

बस एक दिन
क्यूँ मनाता हूँ उसका उत्सव
जिसकी वजह से उत्सव
मेरा हर दिन

बस एक दिन
करता हूँ बखान जिसके वजूद का
जिसकी देन है मेरा वजूद
मेरा हर दिन

बस एक दिन
याद करता हूँ जिसकी शक्ति
उस ऊर्जा के सहारे है
मेरा हर दिन

बस एक दिन
उसका जो करता है सब पूरा
जिसके बिना अधूरा
मेरा हर दिन

बस एक दिन
आधी कायनात के लिए
जिसके साये में गुजरता
मेरा हर दिन


बस एक दिन ....
.....रजनीश (08.03.15).....
.........अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 

Friday, May 30, 2014

अच्छे दिन


अच्छे दिन ....

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन होता हूँ मैं अच्छा
या जिस दिन होते हो तुम अच्छे
या जिस दिन मैं तुम्हारे लिए अच्छा
या जिस दिन तुम मेरे लिए अच्छे

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन हम दोनों ही हों अच्छे
या सारा जग ही हो अच्छा
या जिस दिन हम जग के लिए अच्छे
या जिस दिन जग हमारे लिए अच्छा

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन की जब बीती रात अच्छी
या जिस दिन की सुबह अच्छी
या जिस दिन की दोपहर शाम अच्छी
या जो दिन पूरा का पूरा अच्छा

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिनसे पहले बीते हों बुरे दिन
या जिनके आगे हों बुरे दिन
या जो कभी बीते ही नहीं वो दिन
या जो कभी आते ही नहीं ऐसे दिन

कौन से दिन होते हैं अच्छे
मुट्ठी भर अच्छे पलों वाले दिन
या ढेर सारे अच्छे पलों वाले दिन
या  जो बीत गए वो पुराने हुए  दिन
या जो आएंगे वो उम्मीदों वाले दिन

अच्छा दिन गर खोजें तो सपना है
अच्छा दिन गर जी लें तो अपना है
जो सच होता है वर्तमान में
अच्छा दिन ना बीतता है
अच्छा दिन ना आता है
जो जीता है वो पाता है
अच्छा दिन बस होता है
अभी यहीं हर कहीं
आज है अच्छा दिन ......

रजनीश ( 30.05.2014)

Sunday, July 8, 2012

दिन का बुलावा

हर दिन है
एक निमंत्रण
एक यात्रा का
हर दिन
बढ़ाकर हाथ
कहता है चलो
कभी नींद की ख़ुमारी में
कभी आलस
और कभी
सड़कों पर होते हल्ले में
दब जाती है आवाज़ दिन की
और बीत जाता है
मुझे पुकारता पुकारता
एक दिन

अगर चलूँ
तो रास्ते ही रास्ते ,
अगर रुकूँ
तो उगने लगती हैं दीवारें
फिर चढ़कर और उचककर
इन्हीं दीवारों पर
करता हूँ कोशिश
कि थाम लूँ हाथ
एक नए दिन का

दीवारें मोटी मोटी
पर कोई न कोई कोना
भुरभुरा पाया है हमेशा
ना रुकता और सुन लेता दिन की
तो पैदा ही नहीं होती ये दीवारें
पर रास्ते हैं तो दीवारें भी हैं
दिन भी कहता है यही
पर अक्सर दिखाया है उसने
कि   हैं कई रास्ते दीवारों से होकर भी
और दीवारों के पार
भी हैं मिलती हैं सड़कें
कदम गर बढ़ें तो
बनती जाती है सड़क भी

मैं सुनूँ या ना सुनूँ
देखूँ या ना देखूँ
और उसका हाथ थामूँ या ना थामूँ
दिन बुलाता है हमेशा
साथ चलने
ख़त्म नहीं होती दीवारें
राह के रोड़े ख़त्म नहीं होते
कभी ख़त्म नहीं होता दिन का बुलावा
और रास्ते भी ख़त्म नहीं होते
....रजनीश (08.07.12) 

Sunday, May 13, 2012

ये दिन...











एक दिन  बीतकर
चला जाता है
डायरी के पन्नों  पर
और एक दिन
बीतता है
बस पन्ने पलटते..

दिनों की लंबाई
नहीं होती एक सी
हर दिन  होकर गुजरता  है
उसी सड़क से
पर सड़क कभी लंबी
और कभी छोटी
हो जाया करती है

कभी पसीने के साथ सूखता है दिन
और कभी आसुओं से भीगता है
कभी आधियों में
उड़ जाता है
सड़क से बहुत दूर
और कभी बरसते जज़्बातों
से आई बाढ़ में बह जाता है

ना कभी सूरज और
ना ही कभी उसकी धूप
एक जैसी मिलती है
सड़क पर
दिन का चेहरा भी
धूप के साथ ही बदलते हुए
कैद किया है अपने जेहन में
कितना बदलता है दिन ..
पर इनकी शक्ल याद रह जाती है

कई बार इसे सिर्फ खिलखिलाते देखा
और ये कभी गुमसुम,
तनहाई की चादर ओढ़े
ठिठुरते हुए गुजर गया
मौसम की मार से
सड़क में भी कभी धूल कभी गड्ढे
कभी उतार कभी चढ़ाव
बनते बिगड़ते रहते हैं
और बदलती रहती है दिन की तक़दीर

एक दिन गुजारते गुजारते कभी
महीनों निकल जाते हैं
और एक दिन रोके नहीं रुकता
कई दिनों की सूरत
दुबारा देखने के लिए तरसता हूँ
और कुछ दिन वापस लौट आते हैं
चल कर उसी सड़क से मेरी ओर बार-बार

जैसे भी हों इन बीतते दिनों
की याद सँजोये हूँ
और मेरे अंदर अभी भी
सांस लेते हैं ये टुकड़े वक्त के
जब मिलोगे तो
बैठकर करेंगे
हम बातें ढेर सारी
 इन दिनों की ...
....रजनीश (13.05.2012)

Sunday, December 25, 2011

सीटी

बचपन में हमने जब सीटी बजाई 
डांट भी पड़ी थोड़ी मार भी खाई 

होठों को गोलकर 
मुंह से हवा छोड़ना 
किसी गाने की लय 
से लय जोड़ना 

क्या गुनाह है 
अपनी कलकारी दिखाना 
इन्सानों को सीटी की 
प्यारी धुन सुनाना 

फिर कहा किसी ने 
 कला का रास्ता मोड़ दो 
शाम ढले खिड़की तले 
तुम सीटी बजाना छोड़ दो 

अब हम क्या कहें आप-बीती 
कभी ढंग से न बजा पाये सीटी 
कभी वक्त ने तो कभी औरों  ने मारा
अक्सर हो मायूस दिल रोया हमारा 

पर मालूम था अपने भी दिन फिरेंगे 
कभी न कभी अपने दिन सवरेंगे 

समाज सेवकों को हमारी बधाई 
हमारी आवाज़ संसद तक पंहुचाई 
आज कल खुश है अपना दिल 
आने वाला है व्हिसल-ब्लोअर्स बिल !
जब कानून होगा साथ 
फिर क्यों चुप रहना 
अब खूब बजाएँगे सीटी 
किसी से क्या डरना !
.....रजनीश (25.12.2011)

MERRY CHRISTMAS 
  
 

Wednesday, May 18, 2011

थोड़ा सा रूमानी हुआ जाए

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दिन का हर सिरा
वही पुराना लगता है
वही चेहरे वही खबरें
वही रास्ता वही गाड़ी
वही हवा वही धूप
वही रोड़े वही कोड़े
फ्रेम दर फ्रेम
दिन की दास्तां
वही पुरानी लगती है ...

एक सी काली रातों में
कुछ उतनी ही करवटें
नींद तोड़-तोड़ कर आंखे
देखती मकड़जालों से लटके
वही फटे-पुराने ख़्वाब
कभी पर्दे से झाँकता
दिन का वही भूत
रात की भी हर बात
वही पुरानी लगती है ...

एक ही गाना
चलता बार-बार
हर बार झंकृत होता
वही एक तार
फिर भी  उड़ती नहीं
कल की फिक्र धुएँ में
एक सी जलन  हर पल सीने में
नादान दिल का  डर भी
वही पुराना लगता है  ...

चलो छोड़ो कुछ पल इसे
रखो बगल में अपनी गठरी
थोड़ा सुस्ताएँ !
आओ बैठें , एक दूजे को
जरा निहारें ,
कुछ बतियाएँ !
कैसे हो गए !
चलो एक-एक प्याला चाय हो जाए
कुछ ऊब से गए हैं
थोड़ा सा रूमानी हुआ जाए ....
... रजनीश (17.05.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....