सपनों की फेहरिस्त
लिए
रोज़ चली आती है रात
गुजार देते है उसे, ढूंढते
फेहरिस्त में अपना
सपना
कुछ तारों को तोड़ रात
कल सोये साथ लेकर हम
गुम हुए सुबह की धूप में
जैसे गया था बचपन अपना
हर गली से गुजरते
जाते हैं
लिए हाथों में तस्वीर
अपनी
अपनों के इस वीरान
शहर में
बस ढूंढते रहते हैं
कोई अपना
कुछ दिल उतर आया था
लाइनों में बसी
इबारत में
लिफ़ाफ़े पर कभी उसका
कभी पता लिख देते
है अपना
चलते हैं कहीं
पहुँचते नहीं
थका देते ये पथरीले
रस्ते
रस्ता ही तो है वो
मंज़िल
ज़िंदगी है हरदम चलना
......रजनीश (26.02.2013)
सवाल....इस बात का है कि
हर बात पर क्यूँ है एक सवाल
सवाल ....ये बड़ा है कि
क्या है सबसे बड़ा सवाल
सवाल ....ये उठता है कि
सब क्यों उठाते हैं सवाल
सवाल ....ये पैदा होता है कि
क्यूँ पैदा होता है सवाल
सवाल ....ये है कि
जवाब में क्यूँ होते हैं सवाल
सवाल ....ये बनता है कि
खत्म क्यूँ नहीं होते सवाल
सवाल ....ये है जरूरी कि
क्या जरूरी है हर सवाल
सवाल ...ये खड़ा होता है कि
क्यूँ खड़े करते हो सवाल
सवाल ...ये सही है कि
क्या सही है तुम्हारा सवाल
सवाल ....ये है हर जगह कि
हर जगह क्यूँ है इक सवाल
सवाल ....ये मिलता है कि
क्यूँ ढूंढते हो इक सवाल
सवाल ...ये जानना है कि
जानने के लिए क्या जरूरी है सवाल
सवाल ...ये है कि
सारे सवालों के पार
क्या होगा सवाल ....
जवाब की प्रतीक्षा में .........
रजनीश (19.02.2013)
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