कल रात बैठा लेकर
सपनों का हिसाब किताब
अरमान, तमन्नाएँ , सपने
और हासिल का कच्चा चिट्ठा लिए
सोचता रहा कहाँ खर्च किया
पल दर पल खुद को
और कब-कब बटोरी दौलत
बताने लगे मेरे बही खाते
पन्ने दर पन्ने ...
ढेर सारे पल लग गए
सपने देखने में,
न जाने कितने पन्ने भरे मिले
सपने में ही जीने की दास्ताँ लिए,
बहुत से पल छोड़ने पड़े हैं
दूसरों के सपने सच करने ,
अरसे लगे कई बार
धुंधले अधपके
सपनों को बार बार देखने
और उन्हें कई बार अधूरा जीने में,
कई मौसम चले गए
टूटे बिखरे सपनों को समेटने में
फिर कुछ सपने जो मैं देखता हूँ
दूसरे की आँखों से
उन्हें भी देनी पड़ी है जगह
ज़िंदगी के पन्नों पर,
बैठ तनहाई में गुजारे कुछ पल कई बार
याद करने कुछ भूले हुए सपने,
कई बार आँधी-तूफान और बारिश में
सपनों की पोटली सम्हालने
और बचाने में वक्त लगा
कड़ी धूप में सपनों को
बचाना भी पड़ा झुलसने से,
न जाने कितनी बार बाढ़ में
सपनों को दबाये हुए बगल में
मीलों और बरसों बहता रहा हूँ ,
काफी वक्त लग जाया करता है
पुराने रद्दी और सड़ते सपनों को
छांटने और फेंकने में,
कुछ सपने कभी सच हुए तो
हिसाब में उन्हें जीने का वक्त ही कम निकला,
कई बार ऊब भी हुई है सपनों से
तब गठरी को छोड़कर बस खिड़की से
नीले अनंत आसमान में देखने का दिल किया,
हिसाब लगा कर देखा
तैयारी या इंतज़ार में रहे अक्सर
और हर बार कुछ पल ही जिये
सपनों को सच होता देखते
हाँ ,सपनों का खाता खत्म ना हुआ ...
....रजनीश (18.09.11)