[1]
डांस-बार फिर खुले अगर
वही होगा जो पहले देखा
श्लील-अश्लील के बीच
कहाँ पर खींचें लक्ष्मण-रेखा
[2]
कल के सपने बुन रहा है बिहार अभी चुन रहा है
वादे बकझक सुन रहा है बिहार अभी चुन रहा है
[3]
फिर कुछ सुबहें खास हो गईं
अपनी मैगी पास हो गई
[4]
सेल-डील के चक्कर में, गए अकल लगाना भूल
अक्टूबर के महीने में यारों, बन गए एप्रिल-फूल
[5]
आग लगी हो घर हमारे
तो कौन दुआरे आयेगा
हमारी खुशियों की खातिर
क्यूं अपने हाथ जलायेगा
..........रजनीश (18.10.2015)
मैं हूँ
दो
दुनिया का वासी
एक जहां है सभी असीमित
दूजे में जीवन लख-चौरासी
मैं हूँ दो
दुनिया का वासी ...
एक जहां तुमसे मिलता हूँ
सांस जहां हर पल लेता हूँ
जिसमें मेरे रिश्ते-नाते
रोज जहां चलता फिरता हूँ
दूसरी सपनों की है दुनिया
जिसमें मेरा मन रहता है
उसकी देखा-देखी की कोशिश
इस दुनिया में तन करता है
मैं हूँ
दो
दुनिया का वासी ...
सपने गर अच्छे होते हैं
इस जहान में खुश रहता हूँ
दर्द वहाँ का मुझे गिराता
इस
दुनिया में दुख सहता हूँ
जो सपनों की दुनिया में बुनता
और यहाँ जो कुछ मिलता
है
अंतर जो पाता हूँ इनमें
वही
राह फिर तय करता है
मैं हूँ
दो
दुनिया का वासी
एक जहां है सपने रहते
दूजे में काबा - कासी
मैं हूँ
दो
दुनिया का वासी...
.......रजनीश ( 11.07.2012)
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