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Sunday, May 29, 2011

एक इबारत

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झील की ओर
जा रहे हो ?
वहाँ  खड़ी दीवार पर
लिखी जो  इबारत है
मेरे सपनों का लेखा-जोखा ,
मेरी कहानी है..
पर उसमें मेरे सपने
नहीं  दिखेंगे तुम्हें ...
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...रजनीश (29.05.11)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....