एक रोशनी
बुझते बुझते
एक आग दे गई
दरिंदगी से लड़ती
एक आवाज़ दे गई
खो गई
कहीं आसमां में
इक राह दे गई
हैवानियत ख़त्म करने की
एक चाह दे गई
जूझती रही
बिना थके
दुनिया हिला गई
अत्याचार से लड़ने
कई दिल मिला गई
ना खत्म हो ये जज़्बा
ये सैलाब रुक ना जाए
इक शहादत से जली
ये मशाल बुझ न पाए...
....रजनीश
(05.01.2013)