काली सफ़ेद
दहलीज़ें सुरों की,
साल दर साल
हर रोज़ अंगुलियाँ
जिन्हें पुकारती हैं
और हल्की सी आहट सुन
सुर तुरंत फिसलते बाहर चले आते हैं
कभी नहीं बदलती दहलीज़ सुरों की
और मिलकर एक दूजे से
हमेशा बन जाते हैं संगीत
जो उपजता है दिल में ,
पियानो पर चलती अंगुलियाँ
कभी साथ ले आती हैं तूफान
कभी ठंडी चाँदनी रात की खामोशी,
दिल की धड़कनें अंगुलियों पर
नाचती है सुरों के साथ
फिर पियानो बन जाता है दिल,
एक विशाल सागर
जिसकी लहरों पे सुरों की नाव
में तैरते हैं जज़्बात ...
एक दर्पण दिल का
वही लौटाता है
जो हम उसे देते हैं ...
....रजनीश (04.11।2011)
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Saturday, November 5, 2011
Saturday, June 11, 2011
तस्वीर एक रात की
एक कोने में सिमटी
ओढ़े एक चादर
रात हौले से उठती है
धीरे धीरे लेती सब कुछ
अपने आगोश में
जर्रे-जर्रे में बस जाती है रात ,
एक खामोशी गिनती है
रात के कदम,
लहराकर चादर रात की
गिरा देती है एक किताब
एक पन्ना अधूरी नज़्म,
खो जाती है कलम
रात के साये में,
लैंप की रोशनी
घुल जाती है अँधेरों में,
रात की अंगुलियाँ
तैरती हैं पियानो पर
रात से टकराकर गूँजते सुर
समाने लगते हैं किताब में,
एक और खामोशी टूट जाती है भीतर
तब सिर्फ तुम याद आते हो ....
...रजनीश (11.062011)
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