सूरज की रोशनी में
चमकता एक खूबसूरत फूल
बिखेरता है खुशबू
बस एक स्वार्थ उसका
कि और लग सकें फूल कहीं
पर जबर्दस्ती नहीं करता कभी ,
कल कल बहता झरना
एक बूंद पानी भी
नहीं रखता अपने लिए
पानी का बह जाना
ही है उसका होना
आकाश में उड़ता बादल
एक-एक बूंद बरस जाता है
आखिरी बूंद के साथ
हो जाता है खत्म
पर वो बरसता है
ताकि बन सके एक बार फिर से
किसी छत पर बरसने के लिए
पर हम कुछ सीख न सके
फूल से , झरने से , बादल से
और बस लड़ते हैं
अपने अस्तित्व
अपने अहम की लड़ाई
कुछ पाने के लिए
पर दरअसल खोने में है पाना
.....रजनीश (26.08.2011)